नई दिल्ली: पाकिस्तान ने सिंधु जल संधि बहाल करने को लेकर अब तक भारत को चार पत्र भेजे हैं। एनडीटीवी ने सूत्रों के हवाले से लिखा कि इन चार लेटर में से एक ऑपरेशन सिंदूर के बाद भेजा गया है। सूत्रों ने बताया कि ये चार पत्र पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय के सचिव सैयद अली मुर्तजा ने जल शक्ति मंत्रालय को भेजे थे। इसके बाद मंत्रालय ने उन्हें विदेश मंत्रालय (MEA) को भेज दिया। इन तमाम पत्रों में पाक ने भारत द्वारा जल समझौते को निलंबित करने के फैसले पर गहरी चिंता जताई है। पाकिस्तान ने भारत से इस फैसले पर पुनर्विचार करने और वार्ता के जरिए समस्या का समाधान निकालने का अनुरोध किया है।
गौरतलब है कि 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने सन् 1960 में पाकिस्तान के साथ हुए समझौते को स्थगित कर दिया था। इसे सिंधु जल संधि स्थगित के नाम से जाना जाता है। इसके तहत सिंधु वाटर सिस्टम की 3 पूर्वी नदियों का पानी भारत इस्तेमाल कर सकता है और बाकी 3 पश्चिमी नदियों के पानी पर पाकिस्तान को अधिकार दिया गया था। अब जल संधि स्थगित होने से पाकिस्तान में जल संकट मंडराने लगा है।
भारत का जवाब और स्थिति
भारत के जल शक्ति मंत्रालय की सचिव, देबश्री मुखर्जी ने पाकिस्तान के अपने समकक्ष, सैयद अली मुर्तजा को लिखे पत्र में बताया कि भारत सीमा पार से आतंकवादी गतिविधियों का शिकार है, जिसके कारण उसे सुरक्षा संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इन सुरक्षा चिंताओं की वजह से भारत समझौते के तहत अपने अधिकारों का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है, इसलिए भारत ने यह कदम उठाया है ताकि अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर सके।
पाकिस्तान ने पत्रों में क्या कहा?
सीएनबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, मई की शुरुआत में पाकिस्तान ने पहला पत्र भेजकर भारत से समझौते के निलंबन पर पुनर्विचार करने को कहा था। इसके बाद ऑपरेशन सिंदूर के दौरान तीन और पत्र भेजे गए। ये सभी पत्र भारत के जल शक्ति मंत्रालय के जरिए विदेश मंत्रालय तक पहुंचे। पाकिस्तान का मानना है कि इस निलंबन से उसकी रबी फसलों को काफी नुकसान होगा, हालांकि खरीफ फसलों पर इसका असर कम होगा।
इसके अलावा, इस कदम से वहां के लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी में पानी की जरूरत प्रभावित हो सकती है और पानी को लेकर संकट भी पैदा हो सकता है। पाकिस्तान ने इस विवाद में मध्यस्थता के लिए विश्व बैंक का भी सहारा लिया है। हालांकि, विश्व बैंक ने अभी तक इस मामले में हस्तक्षेप करने से इंकार किया है। इससे पता चलता है कि यह मुद्दा अभी भी गंभीर स्थिति में है और कोई ठोस समाधान नहीं निकल पाया है।
भारत-पाकिस्तान के बीच का सिंधु जल समझौता क्या है?
सिंधु नदी प्रणाली में कुल छह नदियां हैं- सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज। इनके किनारे का इलाका लगभग 11.2 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इसमें 47% जमीन पाकिस्तान, 39% जमीन भारत, 8% जमीन चीन और 6% जमीन अफगानिस्तान में है। इन सभी देशों के करीब 30 करोड़ लोग इन इलाकों में रहते हैं। सन् 1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के पहले से ही भारत के पंजाब और पाकिस्तान के सिंध प्रांत के बीच नदियों के पानी के बंटवारे का झगड़ा शुरू हो गया था। 1947 में भारत और पाक के इंजीनियरों के बीच ‘स्टैंडस्टिल समझौता’ हुआ। इसके तहत दो मुख्य नहरों से पाकिस्तान को पानी मिलता रहा। ये समझौता 31 मार्च 1948 तक चला।
1 अप्रैल, 1948 को जब समझौता लागू नहीं रहा तो भारत ने दोनों नहरों का पानी रोक दिया। इससे पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की 17 लाख एकड़ जमीन पर खेती बर्बाद हो गई। दोबारा हुए समझौते में भारत पानी देने को राजी हो गया। इसके बाद 1951 से लेकर 1960 तक वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में भारत पाकिस्तान में पानी के बंटवारे को लेकर बातचीत चली और आखिरकार 19 सितंबर, 1960 को कराची में भारत के PM नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच दस्तखत हुए। इसे इंडस वाटर ट्रीटी या सिंधु जल संधि कहा जाता है।
भारत ने इस समझौते को रद्द कर दिया या सिर्फ फिलहाल रोक लगाई है?
पहलगाम में आतंकी हमले के एक दिन बाद यानी 23 अप्रैल की शाम प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा था, CCS ने फैसला किया है कि 1960 की सिंधु जल समझौते को तत्काल प्रभाव से स्थगित किया जाएगा, जब तक कि पाकिस्तान विश्वसनीय और अपरिवर्तनीय रूप से सीमापार आतंकवाद को सपोर्ट देना बंद नहीं कर देता।