लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ सहित पूरे राज्य में मंगलवार (10 दिसंबर) को बिजलीकर्मी काली पट्टी बांधकर ड्यूटी कर रहे हैं। उनका कहना है कि विद्युत निगम के निजीकरण की मांग उन्हें स्वीकार नहीं है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के आह्वान पर यह सांकेतिक विरोध किया जा रहा है। आज 84 हजार कर्मचारी विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इनमें 34 हजार सरकारी और 50 हजार संविदा, आउटसोर्सिंग के कर्मचारी भी शामिल हैं।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने बताया कि निजीकरण का लगातार विरोध हो रहा है। इसके कारण 77 हजार नौकरियों पर संकट की स्थिति बनी हुई है। उन्होंने कहा कि आगरा, ग्रेटर नोएडा के निजीकरण के प्रयोग की समीक्षा किए बिना प्रदेश में निजीकरण न थोपा जाए। मुख्यमंत्री से अपील की है कि ग्रेटर नोएडा और आगरा में किए गए निजीकरण के विफल प्रयोगों की समीक्षा किए बिना प्रदेश में निजीकरण का कोई और प्रयोग न किया जाए।
निजीकरण का लगातार कर रहे विरोध
अभियंता संघ के महासचिव जितेंद्र सिंह गुर्जर ने कहा कि बिजली के क्षेत्र में सबसे बड़े स्टेक होल्डर उपभोक्ता और कर्मचारी हैं। आम उपभोक्ताओं और कर्मचारियों की राय लिए बिना निजीकरण की कोई प्रक्रिया शुरू नहीं की जाए। उन्होंने मांग की है कि अरबों-खरबों रुपये की बिजली की संपत्तियों को एक कमेटी बनाकर मूल्यांकन किया जाए। कमेटी में कर्मचारियों और उपभोक्ताओं के प्रतिनिधि शामिल रहें। निजीकरण के विरोध में बिजली कर्मचारियों ने प्रांत व्यापी सभाएं कर निजीकरण का प्रस्ताव वापस लेने की मांग की। आज काली पट्टी बांधकर विरोध कर रहे हैं।
निजीकरण का प्रयोग फेल रहा
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने कहा, सरकार ने निजीकरण नहीं करने का वादा किया था। पूर्व में निजीकरण का प्रयोग फेल रहा है। आगरा और केस्को दोनों के निजीकरण का एग्रीमेट एक ही दिन हुआ था। आगरा टोरेंट कंपनी को दे दिया गया और केस्को आज भी सरकारी क्षेत्र में है। इनकी तुलना से पता चल जाता है कि निजीकरण का प्रयोग फेल हो गया है।