Lok Sabha Protem Speaker: ओडिशा से बीजेपी सांसद भर्तृहरि महताब को लोकसभा का अस्थायी अध्यक्ष (प्रोटेम स्पीकर) चुन लिया गया है, जिन्हें सोमवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शपथ दिलाई। संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू ने बताया कि सात बार के लोकसभा सदस्य भर्तृहरि महताब नए सांसदों को शपथ दिलाएंगे और लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव होने तक पीठासीन अधिकारी के रूप में काम करेंगे।
हालांकि, भर्तृहरि महताब के नाम पर विवाद भी जारी है। कांग्रेस ने महताब को प्रोटेम स्पीकर बनाने को लेकर संसदीय मानदंडों का उल्लंघन बताया है। हालांकि, अगर इतिहास के पन्ने पलटे जाएं तो पता चलता है कि लोकसभा में सबसे वरिष्ठ नहीं होने वाले सदस्यों को भी प्रोटेम स्पीकर के रूप में नियुक्त किया जा चुका है। ऐसा सन् 1956 और 1977 में हुआ था।
कौन होते हैं प्रोटेम स्पीकर? | Lok Sabha Protem Speaker
लोकसभा का पीठासीन अधिकारी होने के नाते स्पीकर की लोकसभा के संचालन में अहम भूमिका होती है। स्पीकर का चुनाव बहुमत के आधार पर होता है, लेकिन जब तक स्पीकर का चुनाव नहीं होता है तब तक लोकसभा की अहम जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए प्रोटेम स्पीकर को चुना जाता है। यही वजह है कि प्रोटेम स्पीकर को अस्थायी स्पीकर भी कहते हैं। संविधान में प्रोटेम स्पीकर के पद का जिक्र नहीं है, लेकिन संसदीय मामलों के मंत्रालय की नियमावली में प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति और शपथ का जिक्र है।
कैसे होता है प्रोटेम स्पीकर का चुनाव? Lok Sabha Protem Speaker Process
संसदीय मामलों के मंत्रालय की नियमावली के अनुसार, नई लोकसभा द्वारा जब तक स्पीकर की नियुक्ति नहीं की जाती है तब तक स्पीकर की जिम्मेदारियों के निर्वहन के लिए राष्ट्रपति सदन के ही किसी सदस्य को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करते हैं। नई लोकसभा के सदस्यों को शपथ ग्रहण कराना प्रोटेम स्पीकर का प्राथमिक काम है। नियमों के अनुसार, राष्ट्रपति द्वारा तीन अन्य लोकसभा सांसदों को भी सांसदों को शपथ दिलाने के लिए नियुक्त किया जाता है। सामान्यतः संसद के सबसे वरिष्ठ सांसद को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है, लेकिन अपवाद भी हो सकते हैं।
राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा के तीन अन्य निर्वाचित सदस्यों को भी सांसदों के समक्ष शपथ लेने के लिए नियुक्त किया जाता है। पुस्तिका के अनुसार, सदन की सदस्यता के वर्षों की संख्या के संदर्भ में सबसे वरिष्ठ सदस्यों को आम तौर पर इस उद्देश्य के लिए चुना जाता है। हालांकि, इसमें अपवाद भी हो सकता है। जैसे ही नई सरकार का गठन होता है तो उसके बाद सरकार का विधायी विभाग लोकसभा के वरिष्ठ सांसदों की लिस्ट तैयार करता है। इस लिस्ट को संसदीय मामलों के मंत्री या प्रधानमंत्री को भेजा जाता है। प्रधानमंत्री की मंजूरी के बाद प्रोटेम स्पीकर और तीन अन्य सांसदों के नाम संसदीय मामलों के मंत्री राष्ट्रपति को इन नामों की जानकारी देते हैं। वहां से मंजूरी मिलने के बाद नामों का एलान कर दिया जाता है।
वरिष्ठता को किया गया दरकिनार? Lok Sabha Protem Speaker Age Limit
अब सवाल यह भी उठता है कि आखिर क्या ऐसा होना जरूरी है कि अगर किसी शख्स को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया जाए तो उसे लोकसभा में सबसे वरिष्ठ सदस्य होना चाहिए। तो इतिहास के पन्ने पलटने पर देख सकते हैं कि प्रोटेम नियम को लेकर दो अपवाद हैं। लोकसभा में सबसे वरिष्ठ नहीं होने वाले सदस्यों को प्रोटेम स्पीकर के रूप में दो बार नियुक्त किया जा चुका है। सबसे पहले सन् 1956 में ऐसा हुआ था। तब सरदार हुकम सिंह को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया गया था। उसके बाद 1977 में डी.एन. तिवारी को अस्थायी स्पीकर बनाया था।
नए सांसद कैसे शपथ लेते हैं?
राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद मंत्रालय नियुक्त किए गए प्रोटेम स्पीकर और अन्य सांसदों के पैनल को नियुक्ति के बारे में सूचित करता है। इसके बाद राष्ट्रपति, राष्ट्रपति भवन में प्रोटेम स्पीकर को शपथ दिलाते हैं। वहीं सांसदों के पैनल को प्रोटेम स्पीकर द्वारा शपथ दिलाई जाती है। इसके बाद अन्य सभी सांसदों को प्रोटेम स्पीकर शपथ दिलाते हैं। लोकसभा की कार्यवाही शुरू होने से पहले ही सांसदों को शपथ दिलाई जाती है।