Lok Sabha Speaker Om Birla: आज संसद में 18वीं लोकसभा के लिए NDA के उम्मीदवार ओम बिरला लोकसभा स्पीकर चुने गए. उन्हें सदन में ध्वनिमत से लोकसभा स्पीकर चुना गया, जिसके उपरांत PM नरेंद्र मोदी और विपक्ष के नेता राहुल गांधी उन्हें आसंदी तक छोड़ने आए. लगातार दूसरी बार लोकसभा स्पीकर बनने के बाद ओम बिरला ने सांसदों के समक्ष संबोधन दिया. अपने पहले भाषण में उन्होंने 1975 में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई इमरजेंसी को लेकर विपक्ष को संसद में जमकर सुनाया.
इतना ही नहीं उन्होंने कांग्रेस को घेरते हुए सदन में दो मिनट का मौन भी रखा. इस दौरान सदन में भारी हंगामा देखने को मिला. साथ ही विपक्षी दलों के नेताओं ने नारेबाजी भी की. इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने X पर स्पीकर ओम बिरला के इमरजेंसी पर दिए बयान पर अपनी प्रतिक्रिया दी.
लोकसभा स्पीकर के पहले भाषण को पीएम ने सराहा
पीएम मोदी ने X पर लिखा, “मुझे खुशी है कि लोकसभा अध्यक्ष ने इमरजेंसी की कड़ी निंदा की, उस दौरान की गई ज्यादतियों को उजागर किया और यह भी बताया कि किस तरह से लोकतंत्र का गला घोंटा गया. इमरजेंसी के समय पीड़ित सभी लोगों के सम्मान में मौन रहना भी एक अद्भुत भाव था.”
कांग्रेस को निशाने पर लेते हुए उन्होंने आगे लिखा, “इमरजेंसी 50 साल पहले लगाई गई थी. लेकिन, आज के युवाओं के लिए इसके बारे में जानना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह इस बात का एक उपयुक्त उदाहरण है कि जब संविधान को रौंदा जाता है, जनमत को दबाया जाता है और संस्थाओं को नष्ट किया जाता है तो क्या होता है. इमरजेंसी के दौरान की घटनाओं ने एक तानाशाही का उदाहरण दिया.”
इमरजेंसी की सालगिरह पर संसद के द्वार पर प्रदर्शन
दूसरी तरफ इमरजेंसी की 50वीं सालगिरह पर एनडीए नेताओं ने संसद के मकर द्वार पर विरोध-प्रदर्शन किया और नारे भी लगाए. इससे पहले आपातकाल की 50वीं बरसी पर विपक्षी दलों के हंगामे के बीच लोकसभा ने सदन में निंदा प्रस्ताव पारित किया.
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सदन में इमरजेंसी लगाए जाने के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि ये सदन 1975 में देश में इमरजेंसी लगाने के निर्णय की कड़े शब्दों में निंदा करता है. इसके साथ ही हम, उन सभी लोगों की संकल्प शक्ति की सराहना करते हैं, जिन्होंने इमरजेंसी का पुरजोर विरोध किया, अभूतपूर्व संघर्ष किया और भारत के लोकतंत्र की रक्षा का दायित्व निभाया. भारत के इतिहास में 25 जून 1975 के उस दिन को हमेशा एक काले अध्याय के रूप में जाना जाएगा. इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई और बाबा साहेब आंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान पर प्रचंड प्रहार किया था.
दुनिया में ‘लोकतंत्र की जननी’ – भारत की पहचान
उन्होंने कहा, “भारत की पहचान पूरी दुनिया में ‘लोकतंत्र की जननी’ के तौर पर है. भारत में हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों और वाद-संवाद का संवर्धन हुआ, हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों की सुरक्षा की गई, उन्हें हमेशा प्रोत्साहित किया गया. ऐसे भारत पर इंदिरा गांधी द्वारा तानाशाही थोपी गई, भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचला गया और अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंट दिया गया. इमरजेंसी के दौरान भारत के नागरिकों के अधिकार नष्ट कर दिए गए, नागरिकों से उनकी आजादी छीन ली गई. ये वो दौर था, जब विपक्ष के नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया, पूरे देश को जेलखाना बना दिया गया था. तब की तानाशाही सरकार ने मीडिया पर अनेक पाबंदियां लगा दी थी और न्यायपालिका की स्वायत्तता पर भी अंकुश लगा दिया था.”
इसके अलावा भी लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने इमरजेंसी के दौरान लगाई गई कई पाबंदियों और ज्यादतियों का जिक्र किया. ओम बिरला द्वारा यह प्रस्ताव पेश करने के बाद लोकसभा ने दो मिनट का मौन रखकर निंदा प्रस्ताव को पारित कर दिया.