उत्तर प्रदेश, राजनीति

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- UP का गुंडा एक्ट बहुत सख्त है, जताई नाराजगी  

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- UP का गुंडा एक्ट बहुत सख्त है, जताई नाराजगी  

गाजियाबाद: देश की शीर्ष अदालत ने बुधवार (4 नवंबर) को कहा कि उत्तर प्रदेश का गुंडा और गैर सामाजिक गतिविधि रोकथाम कानून बहुत सख्त है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए ये बात कही। दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मई, 2023 में गुंडा एक्ट के तहत लंबित कार्यवाही रोकने की मांग वाली एक याचिका खारिज कर दी थी। इस पर याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करने का फैसला किया है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर बीते साल नवंबर में उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा था। साथ ही शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के तहत किसी कार्रवाई पर भी रोक लगा दी थी। अदालत ने इस याचिका पर नवंबर, 2023 में उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा था। साथ ही शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के तहत किसी कार्रवाई पर भी रोक लगा दी थी। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल और अधिवक्ता तन्वी दुबे के जरिए याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यूपी गैंगस्टर्स एक्ट के तहत उनके खिलाफ दर्ज FIR निराधार है। पिछली FIR से उपजी है।

पीठ ने कहा- गुंडा एक्‍ट पर विचार किए जाने की जरूरत

याचिका में कहा गया है कि यह FIR दर्ज करना कानूनी प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग है। इसमें तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ गैंगस्टर्स एक्ट लगाना पक्षपातपूर्ण है और यह पुलिस एवं न्यायिक मशीनरी का दुरुपयोग है। बुधवार को याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क देते हुए कहा कि उनके खिलाफ पहले 1986 एक्ट की धाराओं में अवैध खनन का मामला दर्ज किया गया। एक ही आरोप में दो बार मामला दर्ज किया गया। गुंडा एक्ट की आलोचना करते हुए पीठ ने कहा कि इस पर विचार किए जाने की जरूरत है। पीठ ने ये भी कहा कि इस कानून के कुछ प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती वाली एक अन्य याचिका पर भी अदालत सुनवाई करेगी।

इससे पहले हाई कोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि उसे गैंगस्टर अधिनियम के तहत दर्ज मामले में झूठा फंसाया गया है। उनके वकील ने हाई कोर्ट के समक्ष दावा किया था कि गैंगस्टर अधिनियम के तहत मामला केवल एक अन्य मामले के आधार पर दर्ज किया गया है, जिसमें याचिकाकर्ता का नाम नहीं है।

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