- -बचपन में नज़रअंदाज किए गए लक्षण, किशोरावस्था को करते हैं बर्बाद
- -मानसिक विकारों का इलाज पूरी तरह संभव, भ्रांतियों से रहें दूर और विशेषज्ञ के पास पहुंचिए जरूर
लखनऊ (अभिषेक पाण्डेय)। हर व्यक्ति के जीवन का सबसे सुंदर और यादगार समय होता है। बचपन के दिन अक्सर याद कर चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। हालांकि, अगर यही बचपन किसी बुरी याद या दौर से गुजरा हो तो जीवनभर उसकी छाप मन में रह जाती है। बदलते समय के साथ बच्चों का बचपन भी बदल चुका है और यही वजह है कि बच्चों का मेंटल हेल्थ बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अपने मन को स्वस्थ रखना बहुत जरूरी है। अगर आप मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं हैं तो इसका असर शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करने वाला हो सकता है। मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समाज को शिक्षित और जागरूक करने के साथ सामाजिक कलंक की भावना दूर के लिए हर साल 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है।
अक्सर हम शारीरिक बीमारियों के बारे में तो खुलकर बात कर लेते हैं लेकिन, जब बात मानसिक स्वास्थ्य की होती है तो इसे ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती है। मानसिक विकारों की बात करें तो डिप्रेशन, एंजाइटी, बाइपोलर डिसऑर्डर, ओसीडी, ईटिंग डिसऑर्डर, न्यूरो डेवलपमेंट डिसऑर्डर, डिमेंशिया, अल्जाइमर आदि तो हैं ही, लेकिन इनके अलावा भी बहुत से ऐसे मानसिक विकार हैं जिनके बारे में समाज में कई तरह की भ्रांतियां हैं। सबसे पहले आपको इन्हीं मानसिक विकारों के बारे में बताते हैं…
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डिप्रेशन-एंजाइटी: यह सबसे कॉमन मेंटल प्रॉब्लम है, डिप्रेशन में अधिक उदासी, आत्मविश्वास में कमी, किसी चीज में रुचि ना लेना, भूख या नींद की समस्या हो सकती है। वहीं, एंजाइटी में ज्यादा चिंता, घबराहट, पैनिक अटैक और सोशल एंजाइटी जैसे डिसऑर्डर शामिल होते हैं।
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बाइपोलर डिसऑर्डर: यह एक ऐसी मेंटल स्थित है, जिसमें इंसान दो अलग-अलग तरह से रिएक्ट करता है। उसका मूड कभी अच्छा होता है, तो कभी एकदम से वह चिड़चिड़ा हो जाता है। बाइपोलर डिसऑर्डर वाले व्यक्ति ज्यादा गंभीर होते हैं और उन्हें अटेंशन चाहिए होती है।
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ऑब्सेसिव कंपल्शन डिसऑर्डर: ओसीडी एक तरह की मेंटल प्रॉब्लम ही है। इसमें लोगों को सफाई के लिए ज्यादा जुनून होता है। चीजें व्यवस्थित करना या चीजों खराब होने पर इन्हें बहुत ज्यादा गुस्सा आता हैं। इन्हें अपने घर और आसपास की चीजों को साफ-सुथरा रखना पसंद होता है।
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ईटिंग डिसऑर्डर: यह भी मेंटल हेल्थ की ही एक प्रॉब्लम है, इसमें खाने से संबंधित समस्याएं इंसान को होती है। या तो उसे बहुत ज्यादा भूख लगती है या फिर वह डर के कारण खाना नहीं खाता है, जिसके कारण वजन बढ़ना या वजन कम होने जैसी दिक्कतों का सामना भी करना पड़ सकता है।
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न्यूरो डेवलपमेंट डिसऑर्डर: आमतौर पर बचपन या यंग एज में डेवलप होता है, इसमें ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर अटेंशन डिफिसिटी हाइपरएक्टिव डिसऑर्डर जैसी चीज शामिल होती हैं।
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डिमेंशिया या अल्जाइमर: आमतौर पर बड़े उम्र के लोगों को होता है, यह भी एक मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम है जिसमें मेमोरी लॉस, सोने की क्षमता में कमी, व्यक्तित्व में बदलाव, वैस्कुलर डिमेंशिया जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
चिंता और अवसाद के मामलों में 25% की वृद्धि हुई है
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा साल 2022 में जारी की गई एक वैज्ञानिक रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 महामारी के पहले वर्ष में, वैश्विक स्तर पर चिंता और अवसाद की व्यापकता में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई। महामारी ने युवा लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित किया है और वे आत्महत्या और खुद को नुकसान पहुंचाने वाले व्यवहारों के जोखिम में असमान रूप से हैं। महिलाओं पर पुरुषों की तुलना में अधिक गंभीर प्रभाव पड़ा है और अस्थमा, कैंसर और हृदय रोग जैसी पहले से मौजूद शारीरिक स्वास्थ्य स्थितियों वाले लोगों में मानसिक विकारों के लक्षण विकसित होने की अधिक संभावना थी।
बचपन में ही मानसिक विकारों की पहचान करना जरूरी
लखनऊ में पिछले कई सालों से मरीजों को मानसिक विकारों से निजात दिला रहीं मनोचिकित्सक डॉ. पारुल प्रसाद कहती हैं, खराब मेंटल हेल्थ एक बड़ी समस्या बन रही है। बिगड़ा हुआ लाइफस्टाइल, सोशल मीडिया और भविष्य की चिंता के कारण मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ रहा है। मानसिक विकारों के कई दूसरे कारण भी हैं। बच्चे भी इसका शिकार हो रहे हैं। ऐसे में बच्चे की खराब मानसिक सेहत के बिगड़ने के लक्षणों की समय पर पहचान होना जरूरी है। अगर आपके बच्चे का व्यवहार बदल गया है और वह चिड़चिड़ा रहता है तो ये बच्चे की मेंटल हेल्थ खराब होने के शुरुआती लक्षण हैं। बच्चे के साथ हुई किसी घटना या फिर परिवार में किसी के जाने के गम के कारण ऐसा हो सकता है। इसको मेडिकल की भाषा में मेंटल ट्रॉमा कहते हैं। छोटी-छोटी बातों पर बच्चों को गुस्सा आना। बातों पर ध्यान नहीं देना, अकेले रहना ज्यादा पसंद करना। कई मामलों में स्कूल में हुई किसी घटना से भी बच्चा मानसिक विकारों का शिकार हो सकता है।
मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े ये भ्रम भी हैं खतरनाक
डॉ. पारुल बताती हैं कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर लोगों के मन में कई ऐसी धारणाएं या कहें कि भ्रम हैं जो कई अन्य समस्याएं खड़ी कर देते हैं। समाज में ऐसी धारणा है कि मानसिक बीमारी लाइलाज है, लेकिन यह एक भ्रम से ज्यादा और कुछ नहीं है। मरीज समय रहते सही इलाज कराये तो वह पूरी तरह से ठीक हो सकता है। बीमारी से उभरने में थोड़ा समय लग सकता है। लोगों को सबसे बड़ा डर ये होता है कि हम पागलों के डॉक्टर के पास जा रहे हैं। यहां समझने की जरूरत है कि मेंटल हेल्थ कंडीशन किसी के भी साथ हो सकती है। अगर किसी को एंग्जायटी, डिप्रेशन, सिजोफ्रेनिया जैसी दिक्कत होती है तो बिना किसी शर्मिंदगी, बिना किसी हिचक के विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए।
डॉ. पारुल ने बताया, हमारे पास ऐसे कई पेशेंट आते हैं जो बोलते हैं कि क्या ये दवा जिंदगी भर चलेगी, हमने सुना है कि अगर एक बार ये दवा शुरू हो जाये तो लंबे समय तक चलती है। ये बहुत बड़ा मिथ है क्योंकि मेंटल इलनेस कोई बहुत बड़ी बीमारी नहीं है। इसका ये अंब्रेला टर्म हैं जिसके अंदर हजारों बीमारियां आती हैं। किसी को एंग्जायटी है, किसी को बाइपोलर है, किसी को डिप्रेशन हैं, ओसीडी है। हर बीमारी के लिए ट्रीटमेंट का ड्यूरेशन होता है, अलग-अलग बीमारी के लिए अलग-अलग दवायें रहती हैं। समस्या तब आती है जब एक पेशेंट मेडिसिन का पर्चा ले जाता है। उसके बाद 6-7 महीने या एक साल तक फॉलोअप नहीं लेता है।
आपके मानसिक स्वास्थ्य के लिए सबसे जरूरी है आठ घंटे की पूरी नींद
डॉ. पारुल ने बताया कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है आठ घंटे की नींद। इसके पीछे की वजह बताते हुए उन्होंने कहा, नींद पूरी होने के बाद एकाग्रता की कमी आपमें नहीं होगी और यही आपके लिए सबसे जरूरी है। नींद पूरी करने के बाद आपको योग-ध्यान और शारीरिक व्यायाम करना है। इससे उपयुक्तता स्थापित करने में मदद मिलती है। इसके बाद आपको अपने संतुलित आहार पर ध्यान देना है। आसान भाषा में सही और उपयुक्त डाईट लेनी है। न हद से ज्यादा खाना है और न ही बिलकुल कम। बैलेंस्ड डाइट के बारे में डायटीशियन से संपर्क करने बेहद जरूरी है। वहीं, समय समय पर काम से ब्रेक लेना भी महत्वपूर्ण है। दिमाग को आराम देना है। आज के दौर में मानसिक स्वास्थ्य बरक़रार रखना है तो सोशल होना पड़ेगा। फैमिली टॉक, वेकेशन, गेट-टुगेदर करने की आदत डालिए। स्क्रीन टाइम घटाना है। डिजिटल डिटॉक्स होना है और इस दौरान अपनों के साथ समय बिताना है।
मानसिक स्वास्थ्य के लिए आहार पर भी दें ध्यान
जंक फूड मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। जंक फूड या फास्ट फूड आजकल बच्चों के खान-पान का एक आम हिस्सा बन गया है। इसमें पोषक तत्वों की कमी होती है। यह वजन बढ़ने और मोटापे का कारण भी माना जाता है। इसके अलावा जंक फूड बच्चों के व्यवहार और मूड पर भी असर डालता है। फास्ट फूड और मीठे पेय पदार्थों से भरपूर डाइट से व्यवहार संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। इनमें हाइपरएक्टिविटी, अटेंशन डिफिसिट डिसऑर्डर (एडीडी) और अवसाद भी शामिल है। ज्यादा मीठा खाने से हाइपर एक्टिविटी बढ़ती है। शुगर इनटेक ज्यादा लेने पर इंपल्सिविटी या हाइपर एक्टिविटी बढ़ जाती है।
स्वस्थ भोजन करने से शारीरिक रूप से हम बेहतर महसूस करते हैं और बाहर से भी बेहतर दिखते हैं। स्वस्थ आहार मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डालता है। उच्च गुणवत्ता वाला भोजन लेना अवसाद और चिंता के विकास को काफी हद तक कम करता है। संतुलित आहार हमारे मस्तिष्क को फायदा पहुंचाता है। पोषक तत्व हमारे मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विटामिन बी-12, बी-9 और जिंक की कमी से मूड खराब होना, थकान और चिड़चिड़ापन होता है। इससे भी मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। बहुत अधिक कैफीन वाली चीजों का सेवन करने वालों में चिंता, बेचैनी और नींद संबंधी समस्याएं हो सकती हैं, जो सीधे तौर पर मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। इसी तरह से प्रोसेस्ड और अधिक चीनी वाली चीजें भी आपके लिए नुकसानदायक हो सकती हैं। केक, कुकीज और सॉफ्ट ड्रिंक्स रक्त शर्करा को तेजी से बढ़ाते हैं, जिससे मूड में अस्थिरता होती है। दीर्घकालिक तौर पर इसके कई दुष्प्रभाव हो सकते हैं। अल्कोहल और धूम्रपान मस्तिष्क की कार्यक्षमता को प्रभावित करते हैं और अवसाद-चिंता को बढ़ा सकते हैं। किसी भी मादक पेय से बिल्कुल दूरी बनाकर रखनी चाहिए। अल्कोहल और धूम्रपान शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी नुकसानदायक माने जाते हैं।