उत्तर प्रदेश, राजनीति

यूपी में बिजली के निजीकरण के खिलाफ 1 जनवरी को ‘काला दिवस’ मनाएंगे कर्मचारी  

यूपी में बिजली के निजीकरण के खिलाफ 1 जनवरी को ‘काला दिवस’ मनाएंगे कर्मचारी  

लखनऊ: उत्‍तर प्रदेश में बिजली के निजीकरण के विरोध में 1 जनवरी 2025 को विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने ‘काला दिवस’ मनाने का फैसला किया है। इस दिन ऊर्जा निगमों के सभी बिजली कर्मचारी, संविदा कर्मी और अभियंता पूरे दिन काली पट्टी बांधकर काम करेंगे। इसके अलावा गोरखपुर, झांसी और प्रयागराज में जन-जागरण के लिए बिजली पंचायतों का आयोजन भी तय किया गया है।

संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि 22 दिसंबर को लखनऊ में हुई बिजली महापंचायत में कर्मचारियों ने बिजली के निजीकरण के फैसले पर नाराजगी जताई। उन्होंने निजीकरण के किसी भी स्वरूप को सिरे से खारिज कर दिया। समिति का कहना है कि निजीकरण के जरिए भ्रामक आंकड़े और भय का वातावरण बनाकर फैसला लिया गया है, जो उपभोक्ताओं, किसानों और कर्मचारियों के लिए नुकसानदायक है। संघर्ष समिति की कोर बैठक में फैसला लिया गया कि 1 जनवरी को ‘काला दिवस’ मनाया जाएगा।

यूपी में बिजली के निजीकरण के खिलाफ 1 जनवरी को ‘काला दिवस’ मनाएंगे कर्मचारी  

कर्मचारी करेंगे काम, लेकिन बांधेंगे काली पट्टी

संघर्ष समिति का कहना है कि विरोध के बावजूद आम उपभोक्ताओं को कोई परेशानी न हो, इसका विशेष ध्यान रखा जाएगा। कर्मचारी पूरे दिन अपने कार्यस्थल पर काम करेंगे, लेकिन निजीकरण के खिलाफ विरोध जताने के लिए काली पट्टी पहनेंगे। कार्यालय समय के बाद सभी जिलों और परियोजना मुख्यालयों पर विरोध सभाएं आयोजित की जाएंगी। निजीकरण के खिलाफ जन-जागरण और इसके नुकसान बताने के लिए समिति ने तीन जगह गोरखपुर (27 दिसंबर), झांसी (29 दिसंबर) और प्रयागराज (5 जनवरी) बिजली पंचायतें आयोजित करने का फैसला किया गया है।

मुख्यमंत्री योगी से की ये मांग

संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर विश्वास जताते हुए कहा कि बिजली कर्मचारी उनके नेतृत्व में राज्य की बिजली व्यवस्था में सुधार के लिए लगातार काम कर रहे हैं। समिति ने निजीकरण का फैसला रद्द करने की अपील करते हुए कहा कि अगर यह निर्णय वापस लिया जाता है तो कर्मचारी एक साल के अंदर एटी एंड सी (एग्रीगेट टेक्निकल एंड कमर्शियल) हानियों को 15% से नीचे लाने के लिए संकल्पबद्ध हैं। बिजली कर्मचारियों का यह कदम सरकार के सामने बड़ी चुनौती पेश कर सकता है। अब देखना यह होगा कि सरकार इस विरोध पर क्या रुख अपनाती है और क्या निजीकरण का निर्णय वापस लिया जाएगा।

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