Amit Shah News: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए ‘उत्पीड़ित’ हिंदुओं का भारत की धरती पर उतना ही अधिकार है जितना किसी अन्य भारतीय नागरिक का। उन्होंने कहा कि जो लोग अपने धर्म को बचाने के लिए भारत में शरण लेते हैं, वे शरणार्थी हैं, जबकि बिना उत्पीड़न के अवैध रूप से आने वाले घुसपैठिए कहलाते हैं। उन्होंने विपक्षी कांग्रेस से सवाल किया कि दुनिया में जिसको भी यहां आना है उसको आने दें, तो यह देश धर्मशाला बनकर रह जाएगा। उन्होंने कहा कि वो घुसपैठ, जानसांख्यिकीय परिवर्तन और एसआईआर को राजनीति से न जोड़े। उन्होंने घुसपैठ को राजनीतिक संरक्षण देने की प्रवृत्ति से दूर रहने की अपील करते हुए विपक्ष को चेतावनी दी कि एक समय आएगा जब आप भी नहीं बचोगे।
घुसपैठ से हुआ जनसंख्या परिवर्तन
गृह मंत्री ने कहा है कि देश में धार्मिक आधार पर जनसांख्यिकीय परिवर्तन प्रजनन दर की वजह से नहीं, बल्कि सीमा पार से हुई घुसपैठ के कारण हुआ है। उन्होंने कहा कि देश में मुस्लिम आबादी की वृद्धि 24.6 प्रतिशत की दर से हुई है, इसका कारण प्रजनन दर नहीं बल्कि पड़ोसी देशों से होने वाली घुसपैठ रहा है। शाह ने जनगणना के आंकड़े देते हुए कहा कि 1951 में देश में हिंदू 84 प्रतिशत थे और मुसलमान 9.8 प्रतिशत थे, 1971 में हिंदू 82 प्रतिशत हो गए और मुस्लिम समुदाय की आबादी 11 प्रतिशत थी। जबकि 1991 में हिंदू 81 प्रतिशत और मुसलमान 12.12 प्रतिशत हो गए, जबकि 2011की जनगणना में हिंदू 79 प्रतिशत रह गए औऱ मुस्लिम वर्ग की आबादी 14.2 प्रतिशत हो गई। इसका कारण फर्टिलिटी नहीं बल्कि घुसपैठ है। शाह ने कहा कि पड़ोसी पाकिस्तान में 1951 में हिंदू 13 प्रतिशत थे, जो अब घट कर 1.73 प्रतिशत रह गए हैं, जबकि बांग्लादेश में हिंदुओं की संख्या 22 प्रतिशत थी, जो अब केवल 7.9 प्रतिशत बची है।
‘सीएए पर किया दुष्प्रचार‘
शाह ने कहा कि विभाजन के समय यह तय किया था कि दोनों देशों में सभी प्रकार के धर्मों को मानने की छूट रहेगी। भारत में ऐसा हुआ लेकिन पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार हुए, जिससे वो भागकर भारत की शरण में आए। गृह मंत्री ने कहा कि सभी भारतीय नेताओं ने वादा किया था कि आज़ादी की आपाधापी में यहां दंगे हो रहे हैं, इसलिए बाद में जब आना चाहोगे आपको स्वीकार करेंगे। यह वादा नेहरू-लियाकत पैक्ट का हिंस्सा था, लेकिन बाद में हम इस वादे से मुकर गए। वो हिंदू जब यहां आए तो उनको नागरिकता दिए बगैर शरणार्थी मानकर स्वीकार किया गया। चार-चार पीढ़ियां गुज़रने के बाद भी उनको नागरिकता नहीं मिली।
मोदी सरकार सीएए का क़ानून लाई और उनको नागरिकता देने का काम किया। गृह मंत्री ने इस पर अफसोस जताया कि सीएए क़ानून के बारे में दुष्प्रचार किया गया कि यह क़ानून किसी की नागरिकता छीन सकता है, जबकि एक्ट में ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं था, यह केवल शरणार्थियों को नागरिकता देने का क़ानून था। शाह ने कहा कि मोदी सरकार ने 1951 से लेकर 2014 तक भारत से हुई गलती को सुधारने का काम किया। पीढ़ियों तक वो लोग अपने नाम से मकान नहीं खरीद सकते थे, सरकारी नौकरी
शरणार्थी बनाम घुसपैठिया
शाह ने शरणार्थी और घुसपैठिए के अंतर पर भी विस्तार से बात रखी। उन्होंने कहा कि अपने धर्म को बचाने के लिए जो भारत की शरण में आता है वो संविधान के अनुसार शरणार्थी है। धर्म बचाने के लिए हिंदू ही नहीं, बौद्ध, क्रिश्चियन, सिख भी आए, सबको नागरिकता देने का प्रावधान किया है। गृह मंत्री ने कहा कि जिन पर धार्मिक प्रताड़ना नहीं हुई है और आर्थिक कारणों से देश में अवैध रूप से आना चाहते हैं, वो घुसपैठिये हैं। उन्होंने कहा कि विभाजन के परिप्रेक्ष्य में जिनके साथ वहां अन्याय हुआ है, वो यहां आएं तो स्वागत है। शाह ने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहगा कि शरणार्थी और घुसपैठिये का अंतर जो नहीं समझेगा, वो अपनी आत्मा के साथ छलावा कर रहा है। उन्होंने कहा कि अगर नेहरू-लियाकत समझौते का शुरुआत में ही पालन हो गय़ा होता, तो यह शरणार्थी बनाम घुसपैठिये का विवाद नहीं होता।