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विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस विशेष: विशेषज्ञों से समझिए मानसिक स्वास्थ्य के बारे में सबकुछ

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस विशेष: विशेषज्ञों से समझिए मानसिक स्वास्थ्य के बारे में सबकुछ

लखनऊ (अभिषेक पाण्डेय) रफ्तार भरी इस जिंदगी में लोग सफलता पाने के लिए दौड़ रहे हैं। भागदौड़, बिगड़ी हुई लाइफस्टाइल और हद से ज्यादा स्ट्रेस लेकर सफलता भले ही न मिले, लेकिन मानसिक स्वास्थ्य जरूर ख़राब हो रहा। इन दिनों मानसिक समस्याओं से जूझ रहे लोगों की संख्या में इजाफा हुआ है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि अच्छी मेंटल हेल्थ से न केवल हम खुश रहते हैं, बल्कि इससे हमारे रिश्तों में सुधार होता है और प्रोडक्टिविटी बढ़ने से करियर में तरक्की होती है। मानसिक स्वास्थ्य को सही रखकर ही ओवरऑल हेल्थ को दुरुस्त रखा जा सकता है। अगर किसी व्यक्ति की मेंटल हेल्थ सही नहीं होगी तो उसकी पर्सनल से लेकर प्रोफेशनल लाइफ बुरी तरह प्रभावित होने लगती है। माई नेशन के इस स्पेशल अंक में आपको मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े तमाम विषयों पर प्रकाश डालने की कोशिश की जाएगी…

बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव डालता है घर का माहौल

बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य ठीक न रहने की वजह से उनकी स्कूलिंग काफी हद तक प्रभावित होती है। बच्चों में मेंटल हेल्थ की समस्या के कई कारण हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियां भी समय के साथ मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। अनुवांशिक कारण भी हो सकते हैं। घर का माहौल भी बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव डालता है। पीयर प्रेशर भी बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। वर्तमान में तीन साल से छोटे बच्चों में ऑटिज्म, बड़े बच्चों में एडीएचडी, ओडीडी, कंडक्ट डिसऑर्डर, ईटिंग डिसऑर्डर और डिप्रेशन जैसे मानसिक विकारों के मामलों में वृद्धि हुई है।

डॉक्‍टर सुषमा निशांत उपाध्याय

डॉक्‍टर सुषमा निशांत उपाध्याय का कहना है कि शुरुआती लक्षणों को पहचानना जरूरी है और इसकी शुरुआत घर से ही होनी चाहिए। माता-पिता को बच्चों की हरकतों पर नज़र रखनी चाहिए और जैसे ही उन्हें कुछ गड़बड़ी का अंदेशा हो तुरंत विशेषज्ञ की राय लेनी चाहिए। इसके अलावा बच्चों के साथ समय व्यतीत करना जरूरी है, जिससे उनमें ये भाव उत्पन्न हो कि उनकी भी सुनने वाला कोई है।

बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित कर रहा स्क्रीन टाइम

अलयंत्रा मेडिसिटी सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल की मनोचिकित्सक डॉक्‍टर श्रुति कीर्ति राय बताती हैं कि बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने में सबसे अहम भूमिका निभाई है मोबाइल और इन्टरनेट एडिक्शन ने। इसके अलावा बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य माता-पिता के लाइफस्टाइल पर भी निर्भर करता है। अपनी बातों को समझाते हुए उन्होंने बताया, ऑटिज्म और एडीएचडी की बढ़ती शिकायतों की वजह है शादी में देरी। विवाह में देरी से जहां एक ओर तमाम तरह की शारीरिक व मानसिक बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं वहीं, यह विलंब होने वाले बच्चे को ऑटिज्म और एडीएचडी का शिकार बना रहा है। इसके अलावा भी बहुत कारण हैं, जिसकी वजह से मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है।

मनोचिकित्सक डॉक्‍टर श्रुति कीर्ति राय

उन्होंने बताया कि मोबाइल, लैपटॉप और कंप्यूटर पर ज्यादा समय व्यतीत करना भी मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल रहा है। स्क्रीन पर बच्चा क्या देख रहा है, ये कंटेंट फिल्टर करने का माता-पिता के पास समय नहीं है। वर्तमान में बच्चों का फिजिकल वर्कआउट न के बराबर है, न्यूट्रिशन न के बराबर है और इसकी वजह से हार्मोनल डिसबैलेंस होता है। इन सभी बातों पर जबतक ध्यान नहीं दिया जाएगा तबतक बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य सही नहीं हो पायेगा। विशेषज्ञों के तौर पर हम अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं, लेकिन अभिभावकों के तौर पर माता-पिता को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। माता-पिता को बच्चों के सामने कई अल्टरनेटिव रखने पड़ेंगे, सिर्फ हर चीज़ को मना करना ही सलूशन नहीं है। माता-पिता को बच्चों के साथ बैठकर उनकी हर बात सुननी होगी। बच्चों को ऑप्शंस देने होंगे।

सही समय पर सही इलाज जरूरी, भविष्य में नहीं रहेगी कोई मजबूरी

इस साल विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2024 की थीम ‘कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य’ निर्धारित की गई है। यानी यह कहना गलत नहीं होगा कि कार्यस्थल का वातावरण मानसिक स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यानी आपका मानसिक स्वास्थ्य पके हर जगह काम आता है। अगर कोई बचपन में ही मानसिक विकारों से जूझ रहा है तो दवाइयों के साथ-साथ थेरेपी और थेरापिस्ट की भूमिका भी अहम होती है। यह कहना है बच्चों को मानसिक विकारों से निजात दिला रहे लखनऊ के दी होप रिहैबिलिटेशन एंड लर्निंग सेंटर के प्रबंध निदेशक

दिव्यांशु कुमार

का। उन्होंने बताया कि इलाज के साथ-साथ थेरेपी सबसे ज़्यादा प्रभावी होती है, अगर यह विशिष्ट बच्चे और परिवार की ज़रूरतों के हिसाब से हो। एडीएचडी, व्यवहार संबंधी विकार, चिंता या अवसाद के लिए, व्यवहार थेरेपी और संज्ञानात्मक-व्यवहार थेरेपी से लक्षणों को कम करने की अधिक संभावना होती है। मानसिक विकारों से जूझ रहे बच्चों को दवा ही नहीं सही थेरेपी की भी ज्याद जरूरत है।

 

उन्होंने बताया, दवा और थेरेपी मानसिक विकार को जड़ से समाप्त करने का काम करती है। सीवियर कंडीशन को कम करने में थेरेपी का भी योगदान रहता है। शुरुआती दौर में मानसिक विकारों का पता लग जाए और दवा के साथ-साथ थेरेपी के आप्शन को भी चुना जाए तो ये मानसिक स्वास्थ्य को जल्दी ही ठीक किया जा सकता है।

मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती है शारीरिक स्वास्थ्य की गड़बड़ी

अपोलो अस्पताल में वैस्कुलर-एंडो वैस्कुलर सर्जन के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे डॉ. यशपाल सिंह बताते हैं कि शारीरिक समस्याएं भी मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए, अगर आपको बॉडी पेन है, स्ट्रेन है, जोड़ों में दर्द है, आदि तो इससे कहीं न कहीं आपका मन विचलित होता है और इसकी वजह से आप अपने कार्यस्थल पर बेहतर परफॉर्म नहीं कर पाते हैं। मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं दुनियाभर में तेजी से बढ़ती जा रही हैं, सभी उम्र के लोगों को इसका शिकार पाया जा रहा है। स्ट्रेस-एंग्जाइटी से लेकर डिप्रेशन जैसी मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं संपूर्ण स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाली हो सकती हैं।

डॉ. यशपाल सिंह

मन और शरीर को अक्सर अलग-अलग माना जाता है। हालांकि, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य वास्तव में एक-दूसरे से बहुत करीब से जुड़े हुए हैं। अच्छा मानसिक स्वास्थ्य आपके शारीरिक स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए जरूरी है। शारीरिक गतिविधि न केवल आपके शरीर के लिए अच्छी है, बल्कि यह आपके दिमाग के लिए भी बहुत अच्छी है। सक्रिय रहने से आपके मस्तिष्क में ऐसे रसायन निकलते हैं, जो आपको अच्छा महसूस कराते हैं। इससे आपका आत्म-सम्मान बढ़ता है और आपको ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है। साथ ही अच्छी नींद आती है और आप बेहतर महसूस करते हैं।

उन्‍होंने बताया, शारीरिक स्वास्थ्य समस्याएं मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं विकसित होने के जोखिम को काफी हद तक बढ़ा देती हैं, और इसके विपरीत भी। मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य मूल रूप से जुड़े हुए हैं। मानसिक स्वास्थ्य के बिना कोई स्वास्थ्य नहीं है। मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए पर्याप्त नींद लेना जरूरी है। जब हम सोते हैं तो हमारे दिमाग के पास मेमोरी स्टोर करने, भावनाओं को प्रोसेस करने और ठीक होने का मौका होता है। नींद की कमी या खराब गुणवत्ता के कारण इन प्रक्रियाओं में बाधा आ सकती है, जिससे जलन, भावनात्मक अस्थिरता और ध्यान केंद्रित करने में परेशानी हो सकती है।

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