प्रयागराज: दुनिया के सबसे बड़े दिव्य और भव्य प्रयागराज महाकुंभ की शुरुआत 13 जनवरी, 2025 से होगी। इस धार्मिक समागम में कई रिकॉर्ड भी बनेंगे। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले, संगम नगरी भी कहा जाता है में आयोजित होने वाले महाकुंभ (Mahakumbh 2025) में यह रिकॉर्ड सबसे बड़ा होगा कि तीन दिन के लिए यहां आए श्रद्धालुओं की संख्या दुनिया के 41 देशों से अधिक होगी। ये तीन दिन 29 जनवरी, 2025 को मुख्य शाही स्नान पर्व मौनी अमावस्या, उसके पहले और बाद के होंगे। इन तीन दिनों में करीब साढ़े छह करोड़ श्रद्धालुओं के महाकुंभ में आने की उम्मीद लगाई जा रही है।
ऐसे में देश के मुंबई, दिल्ली, चेन्नई और कोलकाता सहित विश्व के जितने भी बड़े शहर हैं, उनसे बड़ा आबादी वाला महानगर प्रयागराज हो जाएगा। दुनिया के आठ छोटे देशों की जितनी कुल आबादी है, उससे अधिक तो प्रयागराज महाकुंभ मेला (Prayagraj Kumbh Mela 2025) में फोर्स तैनात होगी। करीब सवा लाख जवानों की तैनाती की जा रही है।
12 लाख से ज्यादा कल्पवासी करेंगे जप-तप
विश्व के 12 ऐसे देश हैं, जिनमें कुल सात लाख लोग रहते हैं, उनसे अधिक 12 लाख कल्पवासी महाकुंभ में जप-तप करेंगे। करीब सवा छह करोड़ की आबादी दुनिया के 41 देशों को मिलाकर है। ये देश भले ही कम जनसंख्या वाले हैं लेकिन, विकास व अर्थव्यवस्था सहित कई मामलों में अन्य राष्ट्रों से काफी आगे हैं। इनमें मालदीव, मारीशस, मंगोलिया, भूटान, कतर, नामीबिया, ओमान, कुवैत, न्यूजीलैंड, जार्जिया, नार्वे, सिंगापुर, हांगकांग व कनाडा भी शामिल हैं। मौनी अमावस्या पर इन 41 देशों की पूरी आबादी से कहीं ज्यादा जनसंख्या प्रयागराज शहर से लेकर संगम की रेती पर बसने वाले तंबुओं के नगर तक की हो जाएगी।
वहीं, मौनी अमावस्या के शाही स्नान पर्व पर होने वाली भीड़ को लेकर प्रयागराज और महाकुंभ मेला क्षेत्र में बड़े स्तर पर प्रबंध किए जा रहे हैं। यातायात से लेकर सुरक्षा तक के पुख्ता इंतजाम हो रहे हैं। करीब एक हजार ट्रेनें, विभिन्न एयरपोर्ट से 250 फ्लाइट्स, सात हजार बसें चलेंगी। 20 लाख से ज्यादा निजी वाहनों के लिए 120 पार्किंग स्थल बनाए जा रहे हैं। सड़कों, चौराहों को बेहतरीन किया जा रहा है। ओवरब्रिज, अंडरब्रिज और फ्लाइओवर तैयार हो रहे हैं। पहली बार महाकुंभ में गूगल नेविगेशन का प्रयोग किया जाएगा।
मौनी अमवस्या पर आएंगे सबसे ज्यादा श्रद्धालु
महाकुंभ की भव्यता और दिव्यता को देखते हुए गूगल ने अपनी पालिसी बदलते हुए पहली बार किसी अस्थायी शहर को नेविगेशन (दिशा का निर्धारण) के लिए जोड़ा है। इससे महाकुंभ में घाटों, मठ-मंदिरों, अखाड़ों में पहुंचना और आसान होगा। इसके अलावा मेला एप से भी श्रद्धालुओं को सुविधा मिल सकेगी। महाकुंभ मेलाधिकारी विजय किरन आनंद ने बताया कि महाकुंभ के तीनों शाही स्नान पर्वों पर 12 से 13 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है। इनमें सबसे अधिक श्रद्धालु मौनी अमावस्या पर आएंगे। इसके अनुसार ही सारे प्रबंध किए जा रहे हैं।
प्रयागराज में क्यों मनाया जाता है महाकुंभ?
वैसे तो प्रयागराज में हर साल माघ मेला लगता है, लेकिन अर्ध कुंभ और महाकुंभ मेले की धार्मिक महत्ता और क्रेज कुछ खास ही है। अर्धकुंभ हर छह साल पर और महाकुंभ 12 साल पर लगता है। कुंभ मेले की शुरुआत की कहानी पौराणिक कथाओं में समुद्र मंथन की कथा से जुड़ी हुई है। कथा के मुताबिक, जब देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया तो उस मंथन से अमृत का घट निकला। अमृत को पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच युद्ध छिड़ गया, जिसके चलते भगवान विष्णु ने अपने वाहन गरुड़ को अमृत के घड़े की सुरक्षा का काम सौंप दिया। गरुड़ जब अमृत को लेकर उड़ रहे थे तब अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों- प्रयागराज (Prayagraj), हरिद्वार (Haridwar), उज्जैन (Ujjain) और नासिक (Nasik) में गिर गईं। तभी से हर 12 वर्ष बाद इन स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है।
मान्यता है कि देवताओं और असुरों के बीच 12 दिवसीय युद्ध हुआ, जो मानव वर्षों में 12 वर्षों के बराबर माना गया है। इसलिए, हर 12 साल में कुंभ का आयोजन होता है। इस दौरान श्रद्धालुओं को गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती के संगम में स्नान का विशेष अवसर मिलता है। मान्यता है कि इस पवित्र स्नान से मनुष्य के पापों का क्षय होता है और वह मोक्ष की ओर अग्रसर होता है। चूंकि, परंपरागत तौर पर नदियों का मिलन बेहद पवित्र माना जाता है, और प्रयागराज (पहले इलाहाबाद) में गंगा, यमुना और सरस्वती का अद्भुत मिलन होता है, इसलिए महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में किया जाता है।