UP Politics: अब उत्तर प्रदेश की राजनीति में नया बदलाव आएगा। इसके लिए बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मुखिया मायावती ने बड़ा फैसला लिया है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को सब कैटेगरी बनाने के फैसले के खिलाफ कई संगठनों ने 21 अगस्त को भारत बंद का ऐलान किया है। अब दलितों की सबसे बड़ी पार्टी बसपा ने भी बड़े स्तर पर इस बंद का समर्थन किया है।
बसपा सुप्रीमो मायावती की पार्टी पहली बार भारत बंद के समर्थन में सड़क पर दिखाई देग। बसपा की राजनीति अक्सर सड़क की राजनीति के लिए नहीं जानी जाती है। पार्टी ने आंदोलनों के जरिए सड़क की राजनीति नहीं की। कांशीराम के समय से ही बसपा की राजनीति सत्ता के जरिए अपने लोगों की सेवा करने की रही है। बसपा का कैडर चुपचाप साइलेंट तरीके से अपने दलितों और पिछड़ों में पैठ बनाता रहा है। लेकिन, दशकों बाद अब सुप्रीमो मायावती सड़क के जरिए अपनी राजनीति को धार देने की कोशिश में हैं। बसपा ने दलित संगठनों के भारत बंद का समर्थन करने का ऐलान किया है।
भारत बंद को मिला बसपा का समर्थन
मायावती के उत्तराधिकारी और बसपा के कोअर्डिनेटर आकाश आनंद ने भी भारत बंद का समर्थन करने का ऐलान किया। तमाम दलित संगठनों के साथ अब बसपा के झंडे भी इस आंदोलन में मुखरता से आवाज बुलंद करते दिखाई देंगे।
आकाश आनंद ने एक्स पर लिखा- ‘आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ SC/ST समाज में काफी गुस्सा है। फैसले के विरोध में हमारे समाज ने 21 अगस्त को भारत बंद का आह्वान किया है। हमारा समाज शांतिप्रिय समाज है। हम सबका सहयोग करते हैं। सबके सुख-दुख में हमारा समाज शामिल होता है। लेकिन, आज हमारी आजादी पर हमला किया जा रहा है। 21 अगस्त को इसका शांतिपूर्ण तरीके से करारा जवाब देना है।’
दशकों बाद सड़क पर उतरेगी बसपा
बसपा 35 साल पहले 1989 में सड़कों पर दिखाई दी थी। जब बसपा ने कांशीराम के नेतृत्व में मंडल कमीशन को लागू करने की मांग को लेकर बोट क्लब में बड़ा विरोध प्रदर्शन किया था। इसके बाद साल 2016-17 में भी बसपा ने सड़कों पर एक बड़ा प्रदर्शन किया था, जब बीजेपी नेता दयाशंकर सिंह ने बसपा सुप्रीमो मायावती पर विवादित टिप्पणी की थी। तब पूरी बसपा सड़कों पर उतर आई थी। खुद मायावती ने लखनऊ में एक सभा की थी।
बसपा महासचिव सतीश चंद मिश्रा ने बसपा कार्यकर्ताओं से इस बंद के समर्थन में बढ़-चढ़ हिस्सा लेने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि बसपा के सभी कार्यकर्ता अनुशासित और संवैधानिक तरीके से बड़ी संख्या में इसमें शामिल हों। बसपा के इस एलान के बाद माना जा रहा है कि अब बसपा की नई राजनीति देखने को मिल सकती है।