-बैक और नेक पेन, लकवा, सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस, खराब मुद्रा, पीठ-गर्दन-कंधे के दर्द, गठिया आदि में कारगर है फिजियोथेरेपी उपचार
-सर्जरी से पहले और उसके बाद भी स्वास्थ्य विशेषज्ञ देते हैं फिजियोथेरेपी कराने की सलाह, नहीं है इसका कोई साइड इफ़ेक्ट
– ऑर्थोपेडिक, न्यूरोलॉजिस्ट और न्यूरोसर्जन भी फिजियोथेरेपी को करते हैं रेकमेंड, पेशंट को बनाते हैं सेल्फ डिपेंड
-जिम करने वाले भी कराने आते हैं कापिंग थेरेपी, उन्हें भी आ जाती है मसल की दिकत्तें
अभिषेक पाण्डेय
लखनऊ: हमेशा से ही कई समस्याओं के उपचार के तौर पर मसाज और व्यायाम को महत्व दिया जाता रहा है और फिजियोथेरेपी इन्हीं तरीकों का मिला-जुला रूप है। अगर आप दवा और ऑपरेशन जैसे उपचार की बजाय फिजियोथेरेपी को चुनते हैं तो यकीनन यह एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि हमने हाल ही में फिजियोथेरेपिस्ट डॉक्टर अजीत कुमार सिंह से बात की, जिन्होंने हमें फिजियोथेरेपी से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातें बताई।
दरअसल, आठ सितम्बर विश्व भौतिक चिकित्सा दिवस के रूप में मनाया जाता है. दुनिया भर के भौतिक चिकित्सक यानी फिजियोथेरेपिस्ट इस विशेष दिन को मनाने के लिए एकता और सद्भाव में इकट्ठा होते हैं. फिजियोथेरेपी, मूल रूप से एक व्यायाम व्यवस्था है जहां मरीज़ को सर्वोत्तम संभव तरीके से वापस उसी अवस्था में लाने पर जोर दिया जाता है जैसे वे पहला था. भौतिक चिकित्सा को और करीब से जानने के लिए ब्यूरो चीफ अभिषेक पाण्डेय ने फिजियोथेरेपिस्ट डॉक्टर अजीत कुमार सिंह से बातचीत की है, पढ़िए बातचीत के कुछ अंश…
सवाल: भौतिक चिकित्सा यानी फिजियोथेरेपी क्या है? इसका इस्तेमाल किन रोगों में किया जाता है?
जवाब: फिजियोथेरेपी एक ऐसी विधा है जो सर्जरी से पहले और सर्जरी के बाद, दोनों समय में मरीज के लिए वरदान है. ऑर्थोपेडिक, न्यूरोलॉजिस्ट और न्यूरोसर्जन तक पेशंट को फिजियोथेरेपी कराने की सलाह देते हैं. बैक और नेक पेन, लकवा, सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस, खराब मुद्रा, पीठ-गर्दन-कंधे के दर्द, गठिया आदि के मामलों में मरीज को सर्जरी से पहले और बाद में भी फिजियोथेरेपी से बड़ा ही आराम मिलता है. इन मामलों में दवाओं का असर तबतक रहता है जबतक आप दवाएं खाते हैं, दवा छोड़ते ही आपको दोबारा उसी समस्या से जूझना पड़ता है.
फिजियोथेरेपी का कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं है. एक्सरसाइज के माध्यम से शरीर के जिस भी अंग में समस्या है वहां की मांसपेशियों को मज़बूत करना, जिस हड्डी में दर्द है, जिस नर्व को वो दर्द इफ़ेक्ट कर रहा है उसे स्ट्रेचिंग या आदि के माध्यम से सही करना ही फिजियोथेरेपिस्ट का कार्य है और इसी कार्य को फिजियोथेरेपी कहते हैं.
सवाल: न्यूरो सम्बंधित समस्याओं से जूझ रहे मरीजों को फिजियोथेरेपी की क्यों जरूरत पड़ती है?
जवाब: उदाहरण के तौर पर स्पाइन की सर्जरी हुई. सर्जरी के बाद 80 प्रतिशत पेशंट ऑन बेड हो जाते हैं. न पेशंट का पैर काम करता है, न हाथ काम करता है. पेशंट का सेंसेशन भी जवाब दे चुका होता है. इन पेशंट्स को मसल स्ट्रेचिंग, रेंज ऑफ़ मोशन, पेशंट को बैठाने की कोशिश कराना, सेन्स लाना, खड़ा कराना, वाकर से वाकिंग कराना और पेशंट को सेल्फ डिपेंड बनाने का कार्य फिजियोथेरेपी के माध्यम से किया जाता है. 21 से 180 दिनों तक की थेरेपी मरीजों को दी जाती है.
सवाल: वर्तमान समय में फिजियोथेरेपीकी मदद से किन-किन समस्याओं का इलाज हो रहा है?
जवाब: अभी तो कमर दर्द (स्लिप डिस्क), गर्दन दर्द, गठिया, टेनिस एल्बो ( सचिन तेंदुलकर, सबसे बड़े उदाहरण हैं, फील्ड में उन्हें वापस लाने में फिजियोथेरेपी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है), मस्कुलर इंजरी, वेरीकोज वेंस आदि समस्याओं को फिजियोथेरेपी की मदद से ट्रीटमेंट किया जा रहा है.
सवाल: लकवा यानी पैरालायसिस में फिजियोथेरेपी कितनी कारगर है?
जवाब: फिजियोथेरेपी के ऐसी विधा है जो पैरालायसिस से पीड़ित मरीज को 100 प्रतिशत रिकवर कर देती है. सबसे पहले हम देखते हैं पेशंट किस फेज में है. पहले पेज में नार्मल व्यायाम करवाकर आसानी से रिकवर कर दिया जाता है. अगर समस्या गंभीर है तो टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया जाता है. मरीज अगर दूसरे के सहारे है तो समस्या गंभीर है. इस अवस्था में इंटर फ्रंटल थेरेपी के माध्यम से मरीजों का ट्रीटमेंट किया जाता है.
सवाल: जिम और फिजियोथेरेपी में कितना अंतर है?
जवाब: देखिए, दोनों बिलकुल अलग-अलग हैं. जिम में लोग बॉडी बनाने जाते हैं और फिजियोथेरेपी से बॉडी को फिट रखा जाता है. जिम करने वाले भी कापिंग थेरेपी कराने आते हैं. जिम करने के बाद मसल जकड़ जाती है. इससे दर्द बना रहता है, नींद नहीं आती है, तमाम समस्याएँ होती है और इससे बचने के लिए कापिंग थेरेपी कराई जाती है.
सवाल: फिजियोथेरेपी और ऑक्यूपेशनल थेरेपी में क्या अंतर है?
जवाब: मसल, बोन और नर्व, ये तीन फिजियोथेरेपी का हिस्सा हैं और डेवलपमेंटल डिले से पीड़ित मरीजों का ट्रीटमेंट ऑक्यूपेशनल थेरेपी के माध्यम से किया जाता है.