नई दिल्ली: 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और उनके सहयोगी संगठनों ने बुधवार (09 फरवरी) को हड़ताल बुलाई है। 25 करोड़ से ज्यादा कर्मचारी कल देशव्यापी हड़ताल यानी भारत बंद पर जाने वाले हैं। ऐसे में बैंक, बीमा, डाक, कोयला खनन, हाईवे, निर्माण, और कई राज्यों में सरकारी परिवहन जैसी अहम सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं। इस बंद का मकसद केंद्र सरकार की उन नीतियों का विरोध करना है, जिन्हें यूनियनें मजदूर-विरोधी, किसान-विरोधी और कॉरपोरेट समर्थक मानती हैं।
इस हड़ताल में 25 करोड़ से ज्यादा कर्मचारी हिस्सा लेने वाले हैं। इसमें बैंक, डाक, कोयला खनन, बीमा, परिवहन, फैक्ट्रियां और निर्माण जैसे कई सेक्टरों के कर्मचारी शामिल हैं। इसके अलावा, किसान और ग्रामीण मजदूर भी इस विरोध में शामिल होंगे। ये हड़ताल देशभर में होगी। रेलवे और टूरिज्म जैसे कुछ जरूरी सेक्टरों को इस हड़ताल से बाहर रखा गया है।
ट्रेड यूनियनों ने क्यों बुलाई हड़ताल?
ट्रेड यूनियनों का कहना है कि सरकार की नीतियां मजदूरों और किसानों के खिलाफ हैं। उनका आरोप है कि सरकार कॉरपोरेट्स को फायदा पहुंचाने के लिए पब्लिक सेक्टर की कंपनियों का निजीकरण कर रही है, मजदूरों के हक छीन रही है और चार नए लेबर कोड्स के जरिए मजदूरों के हड़ताल करने और सामूहिक सौदेबाजी जैसे अधिकारों को कमजोर कर रही है।
इस हड़ताल से कई जरूरी सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं। खास तौर पर:-
- बैंकिंग- सरकारी और कोऑपरेटिव बैंक बंद रह सकते हैं या सेवाएं सीमित हो सकती हैं।
- डाक सेवाएं- कामकाज ठप हो सकता है, जिससे डाक डिलीवरी में देरी हो सकती है।
- परिवहन- सरकारी बसें और स्टेट ट्रांसपोर्ट सेवाएं रुक सकती हैं, जिससे परेशानी होगी।
- कोयला खनन- कोयला खनन और औद्योगिक इकाइयों में काम रुक सकता है।
- बीमा सेक्टर- LIC और दूसरी बीमा कंपनियों के दफ्तरों में कामकाज प्रभावित होगा।
हड़ताल को SKM का समर्थन
इस हड़ताल को संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) और कृषि मजदूरों के संगठनों का भी समर्थन मिला है। वे ग्रामीण इलाकों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन, रैलियां और सभाएं आयोजित करेंगे। इसके अलावा कुछ विपक्षी पार्टियां भी इस हड़ताल का समर्थन कर रही हैं।
ट्रेड यूनियनों का कहना है कि ये हड़ताल शांतिपूर्ण होगी और इसका मकसद सरकार का ध्यान मजदूरों-किसानों की समस्याओं की ओर खींचना है। हालांकि, इतने बड़े पैमाने की हड़ताल से कुछ जगहों पर तनाव या असुविधा की स्थिति बन सकती है।
इस हड़ताल पर सरकार का रुख
अभी तक सरकार की ओर से इस हड़ताल पर कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। हालांकि, पहले की हड़तालों को देखें तो सरकार अक्सर इन्हें “सीमित प्रभाव” वाली बताती रही है। इस बार भी सरकार और यूनियनों के बीच तनाव बढ़ सकता है, क्योंकि यूनियनें सरकार की नीतियों को बदलने की मांग कर रही हैं।