- यूपी में मुर्झाया कमल, हाथ का साथ पाकर सरपट दौड़ी सप
- मतदाताओं की नाराजगी को भांप ही नहीं पाया भाजपा का शीर्ष और प्रदेश नेतृत्व
- अग्निवीर और पेपर लीक जैसे मामलों ने युवा मतदाताओं को कर दिया भाजपा से दूर
- कर्मठ कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर हेलीकॉप्टर प्रत्याशी उतारने से औंधे मुंह गिरी बीजेपी
- सांसद और केंद्रीय मंत्रियों के प्रति स्थानीय जनता की नाराजगी को दरकिनार करना पड़ गया भारी
लोकसभा चुनाव 2024 के एग्जिट पोल के नतीजे जब सामने आए तो भारतीय जनता पार्टी के लिए ‘अबकी बार, 400 पार’ का सपना बिल्कुल सच साबित होते हुए नजर आया। मगर, जब मतगणना के दिन रुझान आने शुरू हुए तो कुछ ऐसा हुआ कि किसी ने इस बारे में सोचा तक नहीं था। लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों के रुझानों में भाजपा अपना बहुमत तक लाने में सफल नहीं हो गई, जबकि 100 सीटों पर सिमटने के दावों का सामना कर रहे ‘इंडिया’ गठबंधन ने कड़ी कट्टर देते हुए 200 से ज्यादा सीटों पर अपनी बढ़त बनाए रखी है।
अब सवाल यह उठता है कि मोदी मैजिक, मोदी की गारंटी, भाजपा की डबल इंजन सरकार और मोदी-योगी की जोड़ी जैसी बातों का दावा करने वाली बीजेपी को इतना बड़ा झटका लगा तो लगा कैसे? हम My Nation Daily के इस लेख में आपको उन बिंदुओं या भाजपा की उन कमियों से रूबरू कराएंगे, जिनकी वजह से केंद्र में नरेंद्र मोदी और यूपी में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार को इतने बड़े झटके का सामना करना पड़ रहा है।
सिर्फ मोदी मैजिक के सहारे रहना
भाजपा और एनडीए में पिछले दो महीनों में उसके सहयोगी दलों का चुनाव प्रचार देखेंगे तो एक बात साफ तौर पर नजर आती है कि इन्होंने सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा। चुनावी रैलियों और सभाओं में बीजेपी के छोटे-बड़े सभी नेता स्थानीय मुद्दों से बचते हुए नजर आए। पूरा प्रचार सिर्फ और सिर्फ पीएम मोदी के करिश्मे पर टिका था। भाजपा के उम्मीदवार और कार्यकर्ता भी जनता से कनेक्ट नहीं हो पाए, जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ रहा है।
मतदाताओं में भाजपा के प्रति नाराजगी
लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे इस बात के भी संकेत दे रहे हैं कि भाजपा को कई बड़े मुद्दों पर अपने ही मतदाताओं की नाराजगी झेलनी पड़ी। अग्निवीर और पेपर लीक जैसे मुद्दे साइलेंट तौर पर पार्टी के खिलाफ काम करते रहे। मतदाताओं के बीच सीधा मैसेज गया कि सेना में चार साल की नौकरी के बाद उनके बच्चों का भविष्य क्या होगा? पेपर लीक के मुद्दे पर युवाओं की नाराजगी को समझने में भी भाजपा ने चूक की। पुलिस भर्ती परीक्षा के मुद्दे पर उत्तर प्रदेश के लखनऊ में हुआ भारी विरोध प्रदर्शन इसका गवाह है। भाजपा के नेता ये मान बैठे थे कि सिर्फ नारेबाजी से वो अपने समर्थकों और मतदाताओं को खुश कर सकते हैं।
टिकट वितरण में भारी ओवर कॉन्फिडेंस, जमीनी हकीकत जाने बिना प्रत्याशी उतारना
भारतीय जनता पार्टी ने इस बार जो गलती की है, वो टिकट वितरण में की है। भाजपा के शीर्ष और प्रदेश नेतृत्व ने जिस लोकसभा सीट से अपना प्रत्याशी उतारा, वहां के जमीनी, कर्मठ और निष्ठावान नेता को तवज्जो देने के बजाय मोदी मैजिक के ओवर कॉन्फिडेंस में बाहरी नेताओं को तवज्जो देकर उतार दिया। यह गलती उनको न सिर्फ जनता की नाराजगी के रूप में भारी पड़ी, बल्कि खुद पार्टी के कार्यकर्ताओं की नाराजगी के रूप में भी सामने आई। बाहरी नेताओं को स्थानीय लोगों की समस्याओं की जानकारी नहीं थी तो उन्होंने सिर्फ मोदी-मोदी के नाम के बयान दिए और विकास की बात की, लेकिन जमीनी मुद्दों और जनता से दूर रह गए, जिसका खामियाजा भाजपा को झेलना पड़ रहा है। इस चुनाव में भाजपा को स्थानीय स्तर पर भारी नाराजगी झेलनी पड़ी। कई सीटों पर टिकट बंटवारे की नाराजगी मतदान की तारीख तक भी दूर नहीं हो पाई। कार्यकर्ताओं के अलावा सवर्ण मतदाताओं का विरोध भी कुछ सीटों पर देखने को मिला। कुल मिलाकर कहा जाए तो भाजपा इस चुनाव में सिर्फ उन मुद्दों के भरोसे रही, जो आम जनता से कोसों दूर थे।
उत्तर प्रदेश में भाजपा को क्षत्रियों की नाराजगी की भी कीमत चुकानी पड़ गई। पहले गुजरात में परषोत्तम रुपाला का क्षत्रियों पर कमेंट मुद्दा बना, जिसकी आंच यूपी तक महसूस की जा रही थी। इस बीच गाजियाबाद से जनरल वीके सिंह का टिकट कटना भी मुद्दा बन गया। मतलब साफ था किसी न किसी बहाने बीजेपी को टार्गेट करना। मुजफ्फरनगर में क्षत्रियों के नाराजगी का मुद्दा खूब गरमाया गया। मुजफ्फरनगर से केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान चुनावी मैदान में थे, उनका पीछे चलना बताता है कि राजपूतों की नाराजगी उन्हें भारी पड़ गई। भारतीय जनता पार्टी के ही संगीत सोम ने उनको चूना लगा दिया। प्रतापगढ़ में राजा भैया राज्यसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी के साथ दिखे थे, लेकिन बाद में उनकी नाराजगी से भी पार्टी को नुकसान पहुंचा।
महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को दरकिनार करना
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस चुनाव में महंगाई के मुद्दे ने बहुत ही गहरा असर डाला है। पेट्रोल-डीजल से लेकर खाने-पीने की चीजों पर लगातार बढ़ रही महंगाई ने भाजपा सरकार के खिलाफ एक माहौल पैदा किया। इस मुद्दे के असर को शायद विपक्ष पहले ही भांप गया था, इसलिए उसने हर मंच से गैस सिलेंडर समेत रसोई का बजट बढ़ाने वाली दूसरी चीजों की महंगाई को मुद्दा बनाया। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने बढ़ती महंगाई के लिए आर्थिक नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हुए कई बार प्रधानमंत्री मोदी पर सीधा निशाना साधा। दूसरी ओर भाजपा नेता और केंद्र सरकार के मंत्री महंगाई के मुद्दे पर केवल आश्वासन भरी बातें करते हुए दिखाई दिए।
लोकसभा चुनाव 2024 में बेरोजगारी के मुद्दे ने भी एक बड़े फैक्टर के तौर पर काम किया। हर मंच पर विपक्ष ने बीजेपी सरकार को घेरते हुए बेरोजगारी के मुद्दे पर जवाब मांगा। यहां तक कि कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में वादा कर दिया कि अगर उनकी सरकार केंद्र में बनती है तो तुरंत 30 लाख सरकारी नौकरियां दी जाएंगी। आज के चुनाव नतीजे साफ तौर पर संकेत दे रहे हैं कि राम मंदिर, सीएए लागू करने की घोषणा और यूनिफॉर्म सिविल कोड जैसे मुद्दे भी भाजपा को बेरोजगारी के खिलाफ बने माहौल के नुकसान से नहीं बचा पाए।
पेपर्स लीक और परीक्षाओं में देरी से युवाओं की नाराजगी का नुकसान
ग्रामीण क्षेत्रों में सभी जातियों के लिए जो समान है, वह है सरकारी नौकरी। चाहे ऊंची जाति का घर हो, पिछड़ी या अनुसूचित जाति का परिवार हो, सभी घरों में सरकारी नौकरियों की परीक्षा की तैयारी करने वाले युवा हैं। इन्हीं मुद्दों पर उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2017 में युवाओं ने पहली बार भाजपा को वोट दिया था, लेकिन बीजेपी की दूसरी सरकार के आते-आते परीक्षा माफिया एक बार फिर सरकार पर भारी पड़ने लगा है। यही वजह रही कि यूपी में इस समय राज्य में पेपर लीक और बेरोजगारी के चलते युवाओं का गुस्सा सातवें आसमान पर है। अक्सर ही भर्ती पेपर में गड़बड़ी और धांधली को लेकर प्रदेश के युवा सड़कों पर संघर्ष करते नजर आते हैं तो वहीं, भर्तियों का लंबा इंतजार भी वर्तमान सरकार के प्रति असंतोष की प्रमुख वजह है।
उत्तर प्रदेश में पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा सहित लगभग दर्जन भर परीक्षाएं पेपर लीक के चलते निरस्त हो चुकी हैं। 69 हजार शिक्षक भर्ती घोटाले को उत्तर प्रदेश का ‘व्यापमं घोटाला’ भी कहा जाता है। युवा परेशान रहे और प्रदर्शन करते रहे, लेकिन उन्हें उनकी समस्याओं का हल नहीं मिला। इस मुद्दे को विपक्ष ने भांपा और सपा-कांग्रेस ने अग्निवीर योजना खत्क करने, सरकारी नौकरियां देने का वादा करके युवाओं को अपने खेमे में कर लिया। यही कारण रहा कि युवाओं का वोट भाजपा को नहीं मिला।
यूपी में बसपा का खराब प्रदर्शन
आम तौर पर विपक्ष, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को बीजेपी की बी टीम कहकर टार्गेट करता रहा है, लेकिन कहानी कुछ और ही चल रही थी। पश्चिम से पूरब तक मायावती ने ऐसे प्रत्याशी खड़े किए, जो एनडीए कैंडिडेट्स को ही नुकसान पहुंचा रहे थे। पश्चिमी यूपी में मेरठ में देवव्रत त्यागी, मुजफ्फरनगर से दारा सिंह प्रजापति, खीरी सीट से बीएसपी का पंजाबी प्रत्याशी आदि भाजपा को सीधे नुकसान पहुंचा रहे थे। इसी तरह पूर्वी यूपी में घोसी में बीएसपी ने जो कैंडिडेट दिया, वह सीधा इशारा था कि पार्टी ने एनडीए का काम खराब करने का ठेका ले लिया। इसके अलावा मायावती लोकसभा चुनाव में अपनी दमदार दावेदारी पेश करने में, प्रचार-प्रसार करने में और अपने कार्यकर्ताओं के साथ ही जनता को साधने में नाकाम रहीं, जिससे बसपा का प्रदर्शन खराब हुआ। बसपा के इस खराब प्रदर्शन के कारण भाजपा और एनडीए प्रत्याशियों को नुकसान पहुंचा। पूरे प्रदेश में 2 दर्जन ऐसी सीटें हैं, जहां भाजपा प्रत्याशी के वोट बीएसपी कैंडिडेट के चलते कम हो गए।
अखिलेश यादव की कैंडिडेट देने में सूझबूझ, पीडीए की नीति को बहुत हल्के में लेना
लोकसभा चुनावों के दौरान अखिलेश यादव की इस बात के लिए बहुत आलोचना हुई कि वो बार-बार अपने प्रत्याशी बदल रहे हैं। पर इस बात की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने जो प्रत्याशी खड़े किए, वो स्थानीय गणित के हिसाब से बेहतर थे। यही वजह है कि धरातल पर वो भाजपा प्रत्याशी को जबरदस्त टक्कर देते दिखे। फैजाबाद (अयोध्या) में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी अवधेश प्रसाद ने जीत हासिल की। एक एससी कैंडिडेट को फैजाबाद में खड़ा करने का साहस दिखाना ही अखिलेश की सूझबूझ को दिखाता है। इसी तरह मेरठ संसदीय सीट से टीवी के ‘राम’ अरुण गोविल के खिलाफ एससी कैंडिडेट को खड़ा करना अखिलेश की चुनावी समझ को बताता है। घोसी लोकसभा से भी समाजवादी पार्टी ने पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और प्रवक्ता राजीव राय को टिकट दिया, जो पार्टी का मीडिया चेहरा होने के साथ तमाम सामाजिक कार्यं जैसे एजुकेशनल इंस्टिट्यूट आदि भी चलाते हैं और सबसे बढ़कर स्थानीय जातीय समीकरण के हिसाब से बिल्कुल फिट बैठते हैं। इसी तरह मिर्जापुर से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार राजेंद्र एस बिंद, चंदौली से वीरेंद्र सिंह को टिकट देना, दिखाता है कि उन्होंने कितनी समझदारी और सूझबूझ से स्थानीय जनता के मन को टटोलते हुए अपने प्रत्याशियों का चयन किया, जो उन्होंने जीत भी दिलाने में सफल होते नजर आए।
इसके अलावा भाजपा ने अखिलेश यादव के पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) नारे को भी बहुत हल्के में ले लिया। भाजपा के शीर्ष और प्रदेश नेतृत्व को लगा कि ये सिर्फ सपा का नारा है और जनता मोदी-योगी के साथ है। मगर, अखिलेश यादव ने पीडीए के तहत ही टिकट वितरण कर न सिर्फ भाजपा की सोच को चोट दी, बल्कि पीडीए को साधने में भी सफलता हासिल की। अखिलेश ने पीडीए के तहत ही टिकट बांटे और भाजपा के बाहरी नेताओं को तवज्जो देने और स्थानीय नेताओं को नाराजगी का फायदा अपने कार्यकर्ताओं की जीत के रूप में बदला।
जमीनी मुद्दों पर बात करने की बजाय हर जगह ध्रुवीकरण की कोशिश
भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से लेकर प्रत्याशी तक लोकसभा क्षेत्रों के जमीनी मुद्दों पर बात करने से कतराते रहे। सभी ने स्थानीय मुद्दों, महंगाई और बेरोजगारी पर बात करने के बजाए राम मंदिर, सीएए लागू करने की घोषणा और यूनिफॉर्म सिविल कोड जैसे मुद्दे पर ध्रुवीकरण की कोशिश की जो कामयाब नहीं हो पाई। वहीं, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से लेकर बसपा सुप्रीमो मायावती तक ने जनता की नाराजगी के मुद्दे को चुनावी मैदान में उछाला। इसका परिणाम ये हुआ कि भाजपा को इन मुद्दों पर बात न करना हार के रूप में महंगा पड़ा।
यूपी के मुख्यमंत्री को हटाने की अफवाह से नुकसान
लोकसभा चुनाव 2024 की वोटिंग के दौरान अचानक चुपचाप तरीके से एक अफवाह यह भी फैलाई गई कि अगर भाजपा को 400 सीटें मिलती हैं तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भाजपा पद से हटा देगी। इस बात को लेकर आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने भाजपा पर जमकर निशाना साधा। पश्चिमी यूपी में लगातार कई जिलों में राजपूतों ने सम्मेलन करके कसम दिलाई गई कि किसी भी हालत में भाजपा को वोट नहीं देना है। अगर ठीक से प्रयास किया गया होता तो ये सम्मेलन रोके जा सकते थे। योगी आदित्यनाथ के पद से हटाए जाने की अफवाहों ने भी कहीं न कहीं भाजपा के वोट शेयर को कम कर दिया।