- यूपी में बीजेपी का ‘मिशन 80’ फेल, इंडिया गठबंधन ने जीता ‘मत’ और ‘खेल’
- यूपी में इंडिया गठबंधन का दबदबा, एनडीए का बंटाधार
- दो लड़कों की जोड़ी ने किया कमाल, प्रियंका ने भी सरकार पर खड़े किए थे कई सवाल
2024 Lok Sabha Elections Results: सात चरणों में हुए लोकसभा चुनाव के मतदान के बाद अब स,बकी निगाहें मतगणना पर टिकी थीं। चार जून यानी मंगलवार की सुबह जब ईवीएम का पिटारा खुला तो सभी की धड़कने तेज़ हो गईं। शुरूआती रुझानों में एनडीए और भाजपा की बढ़त दिखी लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया, तस्वीर साफ़ होती चली गई। इंडिया गठबंधन ने यूपी में बीजेपी के मिशन 80 को फेल कर दिया। भारतीय निर्वाचन आयोग के आंकड़े के अनुसार उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन 44 सीटों पर बढ़त बनाए हुए हैं वहीं, एनडीए गठबंधन 36 सीटों पर सिमटती हुई दिखाई दे रही है।
उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर सबकी निगाहें टिकी हुई थीं। पिछले दो आम चुनावों में मुकाबला एकतरफा रहा था। बीजेपी ने प्रचंड जीत हासिल की। 2014 में बीजेपी ने 71 सीटें तो 2019 में 62 सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन इस बार के चुनाव में बीजेपी काफी पिछड़ गई।
इंडिया गठबंधन के शानदार प्रदर्शन की बड़ी वजह
उत्तर प्रदेश में दो लड़कों की जोड़ी ने बीजेपी का सामना करने के लिए साथ आना तय किया और फिर सामाजिक समीकरण साधने की कोशिश के साथ ही अखिलेश यादव की पीडीए (PDA) यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक की रणनीति काम कर गई। बीजेपी के लगातार स्वार्थ का गठबंधन के आरोप के बावजूद सपा और कांग्रेस ने सकारात्मक मुद्दों के साथ चुनाव प्रचार किया और लोगों के बीच उन मुद्दों को लेकर विश्वास बनाने में सफल रहे।
सपा और कांग्रेस की सीटें बढ़ने की वजह क्या है?
सपा और कांग्रेस के आगे बढ़ने की एक बड़ी वजह उत्तर प्रदेश में मायावती की पार्टी बसपा का वोट शेयर घटना रहा। कभी इस पार्टी के लिए कहा जाता था कि बसपा का करीब 20 फीसदी वोटर ऐसा है जो पूरी तरह उसके साथ रहता है। इस चुनाव यह वोट शेयर घटकर नौ फीसदी के करीब रह गया। दलित वोटों का बसपा से दुराव और सपा-कांग्रेस गठबंधन की तरफ जाना भी इसकी एक वजह रही। वहीं, मुस्लिम वोटों का एकमुश्त सपा-कांग्रेस गठबंधन को वोट देने से भी इस गठबंधन को फायदा हुआ।
कांग्रेस के घोषणापत्र का दिखा असर
कांग्रेस ने गरीब महिलाओं को हर महीने 8500 रुपये देने का ऐलान अपने घोषणपत्र में किया था। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना था कि बीजेपी को इसका सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है।
टिकटों के बंटवारे से मिली बढ़त
भारतीय जनता पार्टी ने पार्टी के अंदर विरोध से निपटने के लिए अपने पुराने प्रत्याशियों को ही टिकट दिया और नहीं सोचा कि बीते 10 साल से जो सांसद हैं और अपने क्षेत्र में काम नहीं किया है तो उसके खिलाफ एंटीइनकंबेंसी होगी। भाजपा इस मुगालते में थी कि चुनाव तो नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा जा रहा है। इसलिए किसी को भी टिकट दे दीजिए वो जीत जाएगा। वहीं, अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने बहुत सोच-समझकर और विचार करने के बाद टिकट का बंटवारा किया। अखिलेश यादव ने टिकटों के बंटवारे में जातिगत समीकरण का ध्यान रखा और कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ बचा नहीं था और कांग्रेस के पास न तो कार्यकर्ता थे और न ही खास संगठन जिसके बल पर उसको वोट मिले। लेकिन अखिलेश यादव के साथ से कांग्रेस फिर से जिंदा हो गई है।
मुस्लिम वोट का नहीं हुआ बंटवारा
अखिलेश यादव और राहुल गांधी की जोड़ी सूबे में यह संदेश देने में कामयाब रही कि भाजपा का विकल्प वही दोनों लोग हैं। इसलिए मुस्लिमों का वोट न तो बसपा के पास गया और न ही भाजपा के पास गया। साथ ही बसपा के वोट में अखिलेश यादव और राहुल गांधी की जोड़ी सेंध लगाने में कामयाब होती दिखाई दे रही है।
भाजपा का नकारात्मक प्रचार
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की कई बार सरकार रह चुकी है और अखिलेश यादव 2012 से लेकर 2017 तक सूबे के मुख्यमंत्री रहे हैं। अपने कार्यकाल में उन्होंने काम किया था और वे काम जो अखिलेश यादव ने शुरू किया था और उनके सीएम पद से हटने के बाद पूरे हुए तो भाजपा ने उनको पूरा करके श्रेय लिया। अबकी बार के चुनाव में अखिलेश यादव जनता यह समझाने में कामयाब हो गए कि भाजपा ने विकास का कोई काम नहीं किया। भाजपा ने केवल उनके द्वारा शुरू किए गए कामों का केवल श्रेय लिया है। इसके अलावा भाजपा ने हमेशा इस बात का डर दिखाने की कोशिश की कि अगर सपा सत्ता में आएगी तो गुंडागर्दी बढ़ जाएगी। लेकिन जनता ने उनके इस प्रचार पर ध्यान ही नहीं दिया।
राशन और शासन का मुद्दा भी हुआ फेल
एक धारणा थी कि केंद्र सरकार जनता फ्री में राशन दे रही है। लेकिन कांग्रेस और सपा ने इसका भी काट खोजा। उन्होंने दोगुना राशन देने की बात की और रोजगार के मुद्दे पर बेरोजगारों को आश्वस्त किया कि सरकार बनते ही उनके लिए रोजगार के दरवाजे खोल दिये जाएंगे। इसका भी खासा असर देखा गया।