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बौद्धिक विकलांगता का बढ़ा खतरा, ‘ऑटिज्म’ को जानना और इससे बचाव जरूरी

बौद्धिक विकलांगता का बढ़ा खतरा, ‘ऑटिज्म’ को जानना और इससे बचाव जरूरी
  • जानिए क्या है ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर? इसके लक्षण और कारण

लखनऊ (अभिषेक पाण्डेय) बदलती जीवनशैली के बीच पिछले कुछ वक्त में कई ऐसी बीमारियां तेजी से फैली हैं, जिनके बारे में पहले कभी नहीं सुनने को मिला था। इन्हीं में से एक है ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर। अगर ये नाम पहली बार सुना है तो शाहरुख खान की ‘माइ नेम इज खान’ और आमिर खान की फिल्म ‘तारे जमीन पर’… ये दोनों ब्लॉकबस्टर फिल्में एक बार फिर से देखिए। दोनों ही फिल्मों का मैसेज एक ही था- ऑटिज्म। स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो इसके मामलों में तेजी से बढ़ोतरी देखी जा रही है। ऑटिज्म रिसर्च जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि दुनिया भर में हर 10,000 बच्चों में से लगभग 100 बच्चे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) से पीड़ित हैं।

जानकार यह भी बताते हैं कि यह मानसिक बीमारी लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में चार गुना अधिक पाई जाती है। ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर के बारे में और ज्यादा जानने और इसे समझने के लिए माई नेशन दैनिक ने लखनऊ स्थित ट्राइडेंट न्यूरोसाइकिएट्रिक हॉस्पिटल एवं रिहैबिलिटेशन सेंटर की निदेशक डॉक्टर पारुल प्रसाद (मनोचिकित्सक) से बातचीत की। पढ़िए इस विशेष अंक में बातचीत के कुछ अंश…

डॉ. पारुल प्रसाद (मनोचिकित्सक)निदेशक, ट्राइडेंट न्यूरोसाइकिएट्रिक हॉस्पिटल एवं रिहैबिलिटेशन सेंटर, लखनऊ

डॉ. पारुल प्रसाद (मनोचिकित्सक)
निदेशक, ट्राइडेंट न्यूरोसाइकिएट्रिक हॉस्पिटल एवं रिहैबिलिटेशन सेंटर, लखनऊ

सवाल: क्या है ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर?

जवाब: ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर डेवलपमेंटल डिसएबिलिटी का एक ग्रुप है। दरअसल, ये एक न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर है, जिसके अंतर्गत दिमाग के डेवलपमेंट में दिक्कतें आती हैं। इसके लक्षण बचपन में ही दिखने शुरू हो जाते हैं। इससे ग्रसित बच्चा ठीक प्रकार से कम्युनिकेट करने और खुद को एक्सप्रेस करने की क्षमता खो देता है। इस बीमारी में दूसरे के व्यवहार और अभिव्यक्ति को समझने की क्षमता कम हो जाती है। आसान भाषा में समझें तो सामान्य रूप से व्यवहार करने में समस्या होती है। ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर के अंतगर्त ऑटिस्टिक डिसऑर्डर, एस्परगर सिंड्रोम और पेरवेसिव डेवलपमेंट डिसऑर्डर शामिल हैं। अब उन सभी को एक ही नाम के तहत जोड़ दिया गया है, जिसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर के नाम से जाना जाता है।

सवाल: इस डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चों में किस तरह के लक्षण नजर आते हैं?

जवाब: बच्चों में देर से बोलने का विकास, एक ही शब्दों को बार-बार बोलना, किसी के बुलाने पर जवाब नहीं देना, अकेले रहना ज्यादा पसंद करना, आई कॉन्टेक्ट करने से बचना, एक ही हरकत बार-बार करना, हर दिन एक ही तरह से व्यतीत करना, किसी भी एक काम या सामान के साथ पूरी तरह व्यस्त रहना, दूसरे व्यक्ति की भावनाओं को न समझना, पैरो की उंगलियों के बल चलना, चिड़चिड़ापन आदि जैसे लक्षण सामान्य हैं। चूंकि ये एक न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर है, जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, वैसे-वैसे इस तरह के लक्षण नजर आने लगते हैं। ज्यादातर अभिभावक इन लक्षणों को समझ नहीं पाते हैं और यही कारण है कि इलाज में देरी हो जाती है।

उदाहरण के तौर पर ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को जब भी आप नाम से बुलाते हैं तो वे रिस्पांस नहीं देते हैं, ऐसे में अभिभावकों को यही लगता है कि शायद ‘कान’ में कोई दिक्कत है। फाइनल डायग्नोसिस तक पहुंचते-पहुंचते कहीं न कहीं समय लग जाता है और इसी वजह से इलाज में देरी हो जाती है।

सवाल: इस डिसऑर्डर के पीछे की वजह या कारण क्या हो सकते हैं?

जवाब: ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर के पीछे आनुवांशिकता एक बड़ी वजह है। ऑटिज्म का कोई एक कारण नहीं है, इसके लिए कई प्रकार की स्थितियों को कारक माना जा सकता है। आनुवंशिक के साथ-साथ पर्यावरण कारक इसमें मुख्य भूमिका निभाते हैं। माता-पिता से विरासत में मिले जीन में किसी प्रकार के दोष के कारण बच्चों में विकासात्मक समस्या होने का खतरा हो सकता है। इसके अलावा गर्भावस्था के दौरान होने वाली जटिलताओं के कारण भी इस विकार की समस्या हो सकती है। एनवायरमेंटल फैक्टर, ओल्डर पेरेंट्स, ड्रग्स और टॉक्सिक एक्स्पोजर, प्रेगनेंसी कॉम्प्लिकेशंस और मैटरनल इन्फेक्शन आदि ऑटिज्म के खतरे को बढ़ा देते हैं। हालांकि, इसका कोई एक स्थाई कारण नहीं है। जिंक की कमी को भी आटिज्म के लिए जिम्मेदार माना गया है।

सवाल: क्या गर्भावस्था के दौरान एएसडी के बारे में पता लगाया जा सकता है?

जवाब: फिलहाल, अभी तो ऐसी कोई सुविधा नहीं है, लेकिन अगर आप गर्भावस्था में कुछ बातों का ध्‍यान रखें तो शिशु को इस गंभीर विकार से बचाया जा सकता है। प्रेग्‍नेंसी के दौरान पर्याप्‍त मात्रा में फोलिक एसिड लेने से नवजात शिशु में ऑटिज्‍म के खतरे को कम किया जा सकता है। फोलिक एसिड एक तरह का विटामिन है, जो भ्रूण को जन्‍म विकारों से बचाने और मस्तिष्‍क के विकास को बढ़ावा देता है। प्रेग्‍नेंसी के दौरान महिलाओं को शराब, सिगरेट आदि से दूर रहना चाहिए। इससे शिशु में ऑटिज्‍म, मानसिक मंदता जैसे मानसिक विकारों का खतरा ज्‍यादा रहता है।

सवाल: ऑटिज्म से बचाव और उपचार के लिए क्या विकल्प मौजूद हैं?

जवाब: ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार का कोई इलाज मौजूद नहीं है। जिन बच्चों में इस समस्या का निदान होता है, उनको लक्षणों के आधार पर थेरपी और अन्य उपचार दिए जाते हैं। उपचार का लक्ष्य ऑटिज्म प्रभावित बच्चों के विकास और सीखने की क्षमता को बढ़ाने और कार्य करने की क्षमता में सुधार करने पर ध्यान दिया जाना है। ऑटिज्म को थेरेपी के माध्यम से कण्ट्रोल किया जा सकता है। बच्चों को बीमारी के शुरुआती लक्षणों में ही थेरेपी मिलेगी तो परिणाम बेहतर होते हैं। जिन बच्चों को ऑटिज्म स्पेक्ट्रम होता है, उनमें सोशल स्किल को बढ़ाने के लिए थेरेपी की मदद ली जाती है। इससे बच्चे के नींद के डिसऑर्डर, खाने से जुड़ी समस्याओं, स्ट्रेस, चिंता और मूड से जुड़ी समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया जाता है।

सवाल: ट्राइडेंट एडवांस सेंटर फॉर चाइल्ड डेवलपमेंट एंड रिहैबिलिटेशन क्या है?

जवाब: दरअसल, ये एक ऐसा सेंटर है, जहां 24*7 प्रोफेसनल्स की टीम उपलब्ध रहेगी। इस सेंटर में प्रोफेशनल ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट, बेहविरियल थेरापिस्ट, चाइल्ड साइकोलोजिस्ट, मनोचिकित्सक आदि मौजूद रहेंगे, जिसका फायदा यह होगा कि मरीज और उसके तीमारदार ‘रेफेर पॉलिसी’ के चक्कर से बच जाएंगे, उन्हें एक ही छत के नीचे सम्पूर्ण समाधान मिलेगा। ये लखनऊ का पहले डेडिकेटेड सेंटर हैं, जहां एक छत के नीच कई सुविधाएं मौजूद हैं।

क्या कहते हैं आंकड़े

इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (IAP) के अनुसार, लगभग 3% आबादी ऑटिज्म स्पेक्ट्रम से पीड़ित है। दुनियाभर में 6.18 करोड़ लोग ऑटिज्म के शिकार हैं यानी धरती का हर 127वां इन्सान ऑटिस्टिक है। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज 2021 पर आधारित अध्ययन में ये बातें सामने आईं हैं, जिसके नतीजे अंतरराष्ट्रीय जर्नल लैंसेट साइकियाट्री में प्रकाशित हुए हैं।

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