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पूर्वांचल की खेतीबाड़ी के कायाकल्प की तैयारी, किसानों की पीड़ा दूर करेगी सरकार

अनुसूचित जनजातियों के चौमुखी विकास के लिए आगे बढ़ी योगी सरकार

लखनऊ: आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य का पूर्वांचल। यह पूरा इलाका इंडो गंगेटिक बेल्ट में आता है। इस बेल्ट की जमीन विश्व की सबसे उर्वर भूमि में शुमार होती है। गंगा, यमुना, सरयू, राप्ती, गंडक जैसी नदियों में साल भर पानी रहता है। जमीन की चंद फीट की गहराई पर पानी भी उपलब्ध है। पूरे इलाके में नहरों का संजाल है। अकेले सरयू नहर ही पूर्वांचल के करीब दर्जन भर जिलों की 14 लाख हेक्टेयर भूमि को अपनी सिंचन क्षमता से आच्छादित कर रही है।

खेती के लिए उर्वर जमीन, पर्याप्त पानी के साथ तीसरी सबसे बड़ी जरूरत है श्रमिकों की। चूंकि पूर्वांचल देश का सबसे सघन आबादी वाला इलाका है, इसलिए यहां मानव संसाधन की भी कमी नहीं। यह आबादी खेती के लिए संसाधन होने के साथ उपभोक्ता के रूप में बड़ा बाजार भी है। ऐसे में यहां खेतीबाड़ी के क्षेत्र में हमेशा संभावना रही है। अंग्रेज इस बात को जानते थे। इसलिए उन्होंने यहां गन्ने की खेती को प्रोत्साहन दिया। हर चंद किलोमीटर पर चीनी की इतनी मिलें लगाईं कि यह क्षेत्र उस समय देश के लिए ही नहीं दुनियां भर के लिए चीनी का कटोरा बन गया। पर, आजाद भारत में पूर्वांचल की इस कदर उपेक्षा हुई कि यहां की बदहाली जब संसद में गाजीपुर के सांसद विश्वनाथ गहमरी की जुबानी गूंजी तो सबकी आंखें नम हो गईं। पर हुआ कुछ खास नहीं। राजनीतिक वजहों से पूर्वांचल हरदम से उपेक्षित रहा।

सात साल में योगी सरकार ने कर दिया कायाकल्प

सात साल में योगी सरकार के प्रयासों से कृषि बहुल पूर्वांचल की खेतीबाड़ी का कायाकल्प हो गया। दो दशक से बंद गोरखपुर का खाद कारखाना पहले की अधिक क्षमता से चालू हो गया। इसलिए अब यहां फसली सीजन में खाद के लिए मारामारी नहीं रहती। करीब पांच दशक से बजट के अभाव में लाखों-करोड़ों किसानों के हित वाली बेहद महत्वाकांक्षी सरयू नहर परियोजना को तबकी सरकारों ने पूरा नहीं किया। 2017 में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने पर युद्ध स्तर पर काम कर इसे पूरा किया गया। 14 लाख हेक्टयर की सिंचन क्षमता वाली यह नहर पूर्वांचल के करीब दर्जन भर किसानों की खेतीबाड़ी के लिए संजीवनी बन गई। संयोग से ये वही जिले हैं जिनके लिए सिद्धार्थनगर के एक जिला एक एक उत्पाद कालानमक धान को जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) मिला है।

खेतीबाड़ी के कायाकल्प की दिशा में कई नए आयामों पर भी काम हुआ है। मसलन, भारतीय सब्जी अनुसंधान केंद्र वाराणसी, कुशीनगर का कृषि विज्ञान केंद्र, राष्ट्रीय बागवानी विकास संस्थान (एन एचआरडीएफ), राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र, टाटा ट्रस्ट और अजीमजी प्रेमजी फाउंडेशन मिलकर किसानों को सब्जी, बीजीय मसाले, प्याज की खेती और बागवानी के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। जबसे योगी सरकार ने केले को कुशीनगर का कृषि उत्पाद घोषित किया है तबसे इसकी संभावनाएं और बढ़ गई हैं। कृषि विज्ञान केंद्रों की बुनियादी सुविधाओं में सुधार सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के तहत इनको प्रोसेसिंग और प्रशिक्षण केंद्र में बदलना, किसानों को कृषि जलवायु के अनुकूल उन्नत किस्म के सब्जी और फलों के पौधे उपलब्ध कराने का भी खासा लाभ हुआ है।

बदलाव का सिलसिला अभी जारी है

बदलाव का ये सिलसिला अभी जारी है और आगे भी जारी रहेगा। गोरखपुर में बनने वाला पशु चिकित्सा महाविद्यालय, कुशीनगर में महात्मा बुद्ध के नाम पर बनने वाला कृषि विश्वविद्यालय इसका जरिया बनेंगे। उल्लेखनीय है कि पूर्वांचल का अधिकांश हिस्सा बाढ़ग्रस्त है। यहां नदियों के दियारा क्षेत्र में कभी सबसे स्वस्थ्य पशु संपदा पाई जाती थी। पशु चिकित्सा महाविद्यालय खुलने पर इसका लाभ पशुपालकों को मिलेगा। इसी तरह कृषि विश्वविद्यालय में इस क्षेत्र और बदलते जलवायु के मद्देनजर जो शोध होंगे, जो नई प्रजातियां विकसित होंगी उनका दूरगामी लाभ यहां के किसानों को होगा। इसी तरह का लाभ अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान केंद्र (इरी) फिलिपिंस की वाराणसी में खुली शाखा से भी होगा।

कायाकल्प की मुहिम में विश्व बैंक भी योगी सरकार के साथ

योगी सरकार की किसानों के हितों की प्रतिबद्धता को देखते हुए विश्व बैंक भी इसमें सहयोग करने जा रहा है। इसके लिए साल की एक परियोजना बनाई गई है जिस पर 4000 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इसके लिए जिन 28 जिलों का चयन किया गया है, उनमें से 21 पूर्वांचल के हैं। बाकी सात जिले बुंदेलखंड के हैं।

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