लखनऊ: लखनऊ निवासी अभिषेक शुक्ला ने कर्नाटक के रायचूर जनपद में ₹10 हजार करोड़ का सोना और तांबा तलाशने में सफलता हासिल की है. इस प्रोजेक्ट को अभिषेक ने 2015 में शुरू किया था जो कि साल 2022 तक चला. बता दें कि अभिषेक लखनऊ विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के पूर्व छात्र हैं. उनकी इस उपलब्धि के लिए मंगलवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनको सम्मानित किया है.
कल्चरल सेंटर में किया गया आयोजन
कार्यक्रम का आयोजन राष्ट्रपति भवन स्थित कल्चरल सेंटर में किया गया. जहां राष्ट्रपति ने अभिषेक को डिस्कवरी और एक्सप्लोरेशन की श्रेणी में राष्ट्रीय भू-वैज्ञानिक अवार्ड दिया. इस दौरान खनिज मंत्री जी किशन रेड्डी भी मौजूद रहे. अभिषेक लखनऊ के जानकीपुरम में रहते हैं. उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से 2010 में स्नातक व परास्नातक पूरा किया था. इसके बाद उन्होंने 2013 में यूपीएससी की परीक्षा दी और भारतीय भू वैज्ञानिक सेवा में उनका चयन हो गया. अभिषेक 2013 से लेकर 2022 तक बंगलूरू में कार्यरत रहे. इसके बाद उनको लखनऊ में तैनाती मिल गई. वर्तमान में वह भारतीय भू वैज्ञानिक उत्तरी क्षेत्र कार्यालय, लखनऊ में संयुक्त निदेशक के पद पर कार्य कर रहे हैं.
700 किलो सोना होगा तैयार
अभिषेक ने अपनी उपलब्धि को लेकर मीडिया से बात करते हुए बताया कि इस प्रोजेक्ट को उन्होंने 2015 में रायचूर में शुरू किया था. यह प्रोजेक्ट 2022 तक चला. इस दौरान 18.7 मिलियन टन कॉपर (तांबा) और 1.7 मिलियन टन (सोना) मिला. उन्होंने बताया है कि स्वर्ण खनिज को शोधित करने पर करीब 700 किलो सोना तैयार किया जाएगा. अभिषेक ने कहा कि दोनों धातुओं की वर्तमान बाजार कीमत करीब 10 हजार करोड़ रुपये है.
मैपिंग पर मिला था सोना व खनिज संपदा होने का संकेत
अभिषेक ने मीडिया को बताया कि रायचूर की मैपिंग करने पर उनको सोना और अन्य खनिज संपदा होने के संकेत मिले थे. इसी के बाद उन्होंने अपनी टीम के साथ ड्रिल करना शुरू किया. हालांकि इसका नतीजा बहुत सकारात्मक नहीं मिला. इस पर उनके ऊपर प्रोजेक्ट को बंद करने का दबाव बन रहा था. क्योंकि एक मीटर ड्रिल करने की लागत 6 से 7 हजार रुपए आती है. तो वहीं दूसरी ओर उनका मॉडल उस जगह पर सोना व तांबा होने के संकेत दे रहा था.
इस पर उन्होंने अपने अधिकारियों से बात की और आगे ड्रिल करन की अनुमति मांगी. इसके बाद अभिषेक व उनकी टीम ने अलग-अलग जगहों पर करीब 7 हजार मीटर ड्रिल की. अभिषेक ने बताया कि सबसे अधिक गहराई की ड्रिल 350 मीटर की थी. अभिषेक ने बताया कि खनिज संपदा की इस टीम में उनके साथ केरल से डा. एमएन प्रवीण और डा. परशुराम व महाराष्ट्र की डरेरा डिसिल्वा शामिल थीं.
आखिर कैसे पता चला तांबें का
अभिषेक ने बताया कि जो पत्थर लगातार पानी पड़ने के कारण लाल निशान वाले हो जाते हैं, वहां तांबा होने की संभावना होती है तो वहीं जिन पर लाल निशान होते हैं, वहां पर लोहा मिलता है. उन्होंने कहा कि इस प्रोजेक्ट में पत्थरों पर हरे निशान थे. उन्होंने बताया कि इनका बुरादा बनाकर जांच करने पर .10 प्रतिशत से भी कम अंश मिल रहा था, जबकि इससे अधिक अंश होने पर ही आगे ड्रिल की अनुमति होती है. अभिषेक ने कहा कि हालांकि उनको 350 मीटर गहरी ड्रिल की गई तो तांबा होने के स्पष्ट प्रमाण मिल गए.