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बाल विवाह जीवनसाथी चुनने का अधिकार छीनता है, कानून में कई खामियां, जागरूकता की जरूरत: सुप्रीम कोर्ट

बाल विवाह जीवनसाथी चुनने का अधिकार छीनता है, कानून में कई खामियां, जागरूकता की जरूरत: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्‍ली: देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (18 अक्टूबर) को बाल विवाह को लेकर फैसला सुनाया। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा, ‘बाल विवाह रोकने के लिए हमें अवेयरनेस की जरूरत है, सिर्फ सजा के प्रावधान से कुछ नहीं होगा।’

सीजेआई ने कहा, हमने बाल विवाह की रोकथाम पर बने कानून (PCMA) के उद्देश्य को देखा और समझा। इसके अंदर बिना किसी नुकसान के सजा देने का प्रावधान है, जो अप्रभावी साबित हुआ। हमें जरूरत है अवेयरनेस कैंपेनिंग की। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिका सोसाइटी फॉर एनलाइटनमेंट एंड वॉलेंटरी एक्शन ने साल 2017 में लगाई थी। एनजीओ का आरोप था कि बाल विवाह निषेध अधिनियम को शब्दश: लागू नहीं किया जा रहा है।

पिछली सुनवाई में क्या-क्या हुआ था?

  • सुप्रीम कोर्ट ने जागरूकता अभियान और प्रशिक्षण जैसे विशिष्ट कार्यक्रमों पर सवाल उठाते हुए कहा था- ये कार्यक्रम और व्याख्यान वास्तव में जमीनी स्तर पर चीजों को नहीं बदलते हैं। हम यहां किसी की आलोचना करने के लिए नहीं हैं। यह एक सामाजिक मुद्दा है। सरकार इस पर क्या कर रही है।
  • अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने बेंच को वर्तमान स्थिति के बारे में बताते हुए कहा था कि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और असम जैसे राज्यों में बाल विवाह के मामले ज्यादा देखे गए हैं। असम को छोड़कर पूर्वोत्तर राज्यों में ऐसी कोई घटना नहीं हुई है।
  • विधि अधिकारी का कहना था कि 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 29 ने बाल विवाह पर आंकड़े उपलब्ध कराए हैं। पिछले तीन साल में हालात में काफी सुधार हुआ है। उन्होंने यह भी कहा था कि बाल विवाह के मामलों में दोषसिद्धि पर कोई डेटा उपलब्ध नहीं है। हालांकि 2005-06 की तुलना में बाल विवाह के मामलों में 50% की कमी आई है।

बाल विवाह के खिलाफ असम में कई फैसले लागू

जुलाई, 2024 में असम सरकार की कैबिनेट ने असम मुस्लिम निकाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम, 1935 को हटाकर अनिवार्य रजिस्ट्रेशन लॉ को लाने के लिए एक बिल को मंजूरी दी थी। 1935 के कानून के तहत स्पेशल कंडीशन में कम उम्र में निकाह करने की अनुमति दी जाती थी। जुलाई में जारी इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन रिपोर्ट ने बाल विवाह से निपटने के लिए असम सरकार के प्रयासों की सराहना की। रिपोर्ट में कहा गया कि कानूनी कार्रवाई के जरिए असम में बाल विवाह के मामलों को कम किया है। 2021-22 और 2023-24 के बीच राज्य के 20 जिलों में बाल विवाह के मामलों में 81% की कमी आई है।

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