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–दिव्यांगता गौरव माह विशेष: विशेषज्ञों की तैयारी, अब मानसिक दिव्यांगता नहीं बनेगी मजबूरी
अभिषेक पाण्डेय
लखनऊ। स्पेशल बच्चों को अब दर-दर भटकना नहीं पड़ेगा। दिव्यांगता गौरव माह (जुलाई) के तहत भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय विशेष बच्चों के लिए सर्टिफिकेट कोर्स शुरू करने जा रहा है। इसके लिए विशेष बच्चों की संस्था द होप रिहैबिलिटेशन एंड लर्निंग सेंटर (लखनऊ) और विश्वविद्यालय के बीच एमओयू होगा। सेंटर के प्रबंध निदेशक दिव्यांशु कुमार द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, विवि विशेष बच्चों के लिए सर्टिफिकेट कोर्स शुरू करेगा। इसके साथ ही विवि के शोधार्थी इन बच्चों पर रिसर्च भी कर सकेंगे। इससे कहीं न कहीं विशेष बच्चों का बौद्धिक विकास होगा। वहीं, कुलपति प्रो. मांडवी सिंह के मुताबिक, विवि ने डांस थेरेपी पर आधारित एक नया सर्टिफिकेट कोर्स तैयार किया है। यह कोर्स बनाने में विवि के नृत्य विभाग की प्रवक्ता डॉ. रुचि खरे के रिसर्च वर्क पर आधारित पुस्तक ‘थेरा प्युटिक मैजिक ऑफ़ कथक’ की मदद ली गई है।
हर साल जुलाई का महीना दिव्यांगता गौरव माह के रूप में मनाया जाता है। एक ऐसा अवसर जब हम शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की दिव्यांगताओं को न सिर्फ पहचानते हैं, बल्कि उनका सम्मान भी करते हैं। हालांकि, जब बात मानसिक दिव्यांगता की होती है तो समाज में अब भी एक चुप्पी, असहजता और कई बार उपेक्षा देखने को मिलती है। मानसिक दिव्यांगता को अक्सर ‘कम दिखने वाली’ या ‘न दिखने वाली’ दिव्यांगता माना जाता है, जो इसे और भी जटिल बना देती है। मानसिक दिव्यांगता में बौद्धिक अक्षमता, ऑटिज़्म, स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर, डाउन सिंड्रोम, सिज़ोफ्रेनिया, बायपोलर डिसऑर्डर और लर्निंग डिसेबिलिटीज़ जैसी अवस्थाएं आती हैं।

दिव्यांशु कुमार, प्रबंध निदेशक, द होप रिहैबिलिटेशन एंड लर्निंग सेंटर
रोजगार सृजन की दिक्कतें भी होंगी खत्म
भविष्य में स्पेशल बच्चों को रोजगार तलाशने में अड़चने न आएं, इसके लिए दिव्यांशु कुमार ने अभी से तैयारियां शुरू कर दी हैं। दरअसल, स्पेशल बच्चों को सबसे ज्यादा दिक्कतें स्कूलिंग करने में आती हैं। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए स्कूल रेडिनेंस प्रोग्राम के तहत स्पेशल स्कूल का संचालन जारी है। साथ ही नॉर्मल स्कूल की भी जल्द शुरुआत की जाएगी। इससे कहीं न कहीं एकेडमिक डिले को कवर करने में आसानी मिलेगी। यह पहल, सिर्फ लखनऊ तक ही सीमित नहीं रहेगी। आगे आने वाले समय में पूरे प्रदेश और फिर देशभर में इसका संचालन करने का प्रयास रहेगा। साथ ही बच्चों को स्पेशल प्रोफेशनल कोर्स की ट्रेनिंग दिलाने के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं। स्पेशल बच्चों को सर्टिफिकेट कोर्स करवाए जाएंगे। वहीं, जो बच्चे रेहाब नहीं हो पाएंगे, उनके लिए भी प्लान्स तैयार हैं।कोशिश है कि रिटेल हाउस और पब्लिकेशन हाउस तैयार किए जाएं, जिसके तहत स्पेशल बच्चों को रोजगार के अवसर प्रदान किए जाएं।
स्पेशल बच्चों में कैसे काम करती है ऑक्यूपेशनल थेरेपी?
वेद प्रकाश गुप्ता (सीनियर ऑक्यूपेशनल थेरापिस्ट, द होप रिहैबिलिटेशन एंड लर्निंग सेंटर) के मुताबिक, डेवेलपमेंट डिले को कवरअप करने का काम ऑक्यूपेशनल थेरेपी की मदद से किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, जो बच्चे उम्र के हिसाब से खेल नहीं पाते हैं, उन्हें विभिन्न तकनीकों के माध्यम से खेलना सिखाना ऑक्यूपेशनल थेरेपी के अंतर्गत आता है। कुल मिलाकर, उम्र के हिसाब से बच्चों को डेवलप करने का माध्यम ऑक्यूपेशनल थेरेपी होती है। इसके साथ ही आने वाली उम्र के हिसाब से बच्चों को तैयार करने भी ये थेरेपी काफी मददगार होती है।
वेद प्रकाश गुप्ता
उन्होंने बताया कि यह थेरेपी न केवल बच्चों की दैनिक जीवन की गतिविधियों को बेहतर बनाने में मदद करती है, बल्कि आत्मनिर्भर बनने की दिशा में भी उन्हें सशक्त बनाती है। ऑक्यूपेशनल थेरेपी उन बच्चों के लिए कारगर होती है, जो ऑटिज्म, डाउन सिंड्रोम, सेरेब्रल पाल्सी, लर्निंग डिसएबिलिटी या अन्य न्यूरोलॉजिकल समस्याओं से जूझ रहे होते हैं। इस प्रक्रिया में बच्चों की मोटर स्किल्स, सामाजिक व्यवहार, शैक्षणिक क्षमताओं आदि को सुधारने पर काम करते हैं। जैसे- खाना खाना, कपड़े पहनना, लिखना, रंग भरना, पकड़ बनाना आदि। हम बच्चों को खेल और गतिविधियों के जरिए सिखाते हैं। उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और धीरे-धीरे वे समाज की मुख्यधारा से जुड़ने लगते हैं। जितना जल्दी थेरेपी शुरू की जाए, उतने ही अच्छे परिणाम देखने को मिलते हैं। ये थेरेपी विशेष बच्चों को व्यावहारिक कौशल सिखाती है, उनका आत्मबल भी बढ़ाती है।
स्पीच थेरेपी क्यों जरूरी है?
अरुणिमा सिंह (स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट, द होप रिहैबिलिटेशन एंड लर्निंग सेंटर, जानकीपुरम) के मुताबिक, जिन बच्चों को स्पीच से जुड़ी कोई भी समस्या होती है, उनके लिए स्पीच थेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है। आसान भाषा में समझें तो, जब बच्चा एक्सप्रेशन न दे पाए, यह न बता पाए कि उसे किस चीज की जरूरत है तो कहीं न कहीं उसे स्पीच से जुड़ी समस्याएं जकड़े हुए होती हैं। ऐसे में बच्चा कुछ ऐसी हरकतें करता है, जो आम इंसान के समझ से परे है। या तो बच्चा कोई अलग आवाज निकालने लगेगा या फिर हाइपर हो जाएगा, अचानक गुस्सा हो जाएगा, यह सब इस बात के लक्षण हैं कि बच्चा स्पीच की समस्याओं से जूझ रहा है। स्पीच थेरेपी और स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट इन्हीं सब पर काम करता है। बच्चों में स्पीच को डेवलप करने के लिए विभिन्न तकनीकों का सहारा लिया जाता है। यह थेरेपी तभी कारगर होती है, जब समय रहते इसकी शुरुआत हो जाए।
अरुणिमा सिंह
उन्होंने बताया कि यह थेरेपी बोलने, समझने और संवाद करने में कठिनाई झेल रहे बच्चों के लिए बेहद कारगर है। स्पीच थेरेपी उन बच्चों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है, जिन्हें ऑटिज्म, डाउन सिंड्रोम, सुनने की समस्या, डेवलपमेंटल डिले, स्टैमरिंग (हकलाना), स्पीच डिले जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है। यह थेरेपी न केवल बच्चे की बोलने की क्षमता को बेहतर बनाती है, बल्कि उनकी भाषा समझने और व्यक्त करने की क्षमता को भी निखारती है। इससे बच्चे सही शब्दों का उच्चारण सीखते हैं, वाक्य बनाना और भाव व्यक्त करना सीखते हैं, बच्चों को बेहतर ढंग से प्रतिक्रिया देना सिखाया जाता है, संवाद क्षमता को बेहतर बनाया जाता है। अगर 2-3 साल की उम्र तक बच्चा बोलने या प्रतिक्रिया देने में सामान्य विकास नहीं दिखा रहा है, तो जल्द से जल्द स्पीच थेरेपी शुरू कर देनी चाहिए।
स्पेशल बच्चों के लिए स्पेशल एजुकेशन क्यों जरूरी है?
स्मिता सिंह (सीनियर स्पेशल एजुकेटर, द होप रिहैबिलिटेशन एंड लर्निंग सेंटर, जानकीपुरम) के मुताबिक, जिन बच्चों का आईक्यू लेवल कम होता है, उनको स्पेशल एजुकेशन और एजुकेटर की जरूरत होती है। स्पेशल एजुकेटर उन बच्चों की शिक्षा में सेतु का काम कर रहे हैं, जिन्हें सीखने, समझने या व्यवहारिक विकास में सामान्य से ज़्यादा सहयोग की आवश्यकता होती है। स्पेशल एजुकेशन यानी विशेष शिक्षा एक ऐसी शिक्षण प्रणाली है, जो ऑटिज्म, डाउन सिंड्रोम, लर्निंग डिसएबिलिटी, एडीएचडी, सेरेब्रल पाल्सी जैसे विभिन्न मानसिक या शारीरिक चुनौतियों से जूझ रहे बच्चों की जरूरतों के मुताबिक तैयार की जाती है।
स्मिता सिंह
स्पेशल एजुकेटर न सिर्फ पढ़ाते हैं, बल्कि बच्चे के पूरे विकास (शैक्षणिक, सामाजिक, भावनात्मक और व्यवहारिक पहलुओं) पर भी काम करते हैं। हम बच्चों की सीखने की गति और शैली को समझकर व्यक्तिगत रूप से योजनाएं बनाते हैं। स्पेशल बच्चों को सिर्फ पाठ याद नहीं कराना होता, बल्कि उन्हें जीने की कला सिखानी होती है। उनका आत्मबल बढ़ाना, उन्हें समाज का हिस्सा बनाना हमारा असली मकसद होता है। स्पेशल एजुकेशन और स्पेशल एजुकेटर विशेष बच्चों की जिंदगी को दिशा देने का कार्य कर करते हैं। ये शिक्षक सिर्फ ज्ञान नहीं, आत्मविश्वास, सम्मान और भविष्य भी दे रहे हैं।