उत्तर प्रदेश

Diwali 2024 में प्रदूषण कम करेगा आयुर्वेदिक पटाखा, डेंगू मच्‍छरों की भी खैर नहीं

Diwali 2024 में प्रदूषण कम करेगा आयुर्वेदिक पटाखा, डेंगू मच्‍छरों की भी खैर नहीं

गोरखपुर: प्रकाश पर्व दीपावली (Diwali 2024) में कुछ ही दिन शेष हैं। ऐसे में पटाखों का बाजार सजने लगा है। बच्चों में पटाखों को लेकर काफी उत्साह देखने को मिलता है। लेकिन, कुछ भारी पटाखे बच्चों के लिए नुकसानदेह होने के साथ ही वायु को भी प्रदूषित करने का काम करते हैं। इन्‍हीं बातों को ध्‍यान में रखते हुए कुछ छात्रों ने आयुर्वेदिक पटाखा तैयार किया है, जो प्रदूषण को कम करने के साथ ही डेंगू मच्‍छरों को भी मारने का काम करेगा।

गोरखपुर के इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट गीडा (ITM) के इंजीनियरिंग के छात्रों ने ऐसा आयुर्वेदिक पटाखा तैयार किया है, जो प्रदूषण कम करने के साथ डेंगू मच्‍छरों को भी मारेगा। आईटीएम प्रथम वर्ष के दो छात्र शिवम सिंह और सुमित त्रिपाठी ने कॉलेज के इन्नोवेशन सेल टीम के साथ मिलकर ऐसा दिवाली पटाखा (Diwali Cracker) तैयार किया है, जो माचिस से जलाते ही तेज आवाज के साथ लगभग 1 मिनट में 500 बार पटाखे जैसा आवाज करता है। साथ ही इससे निकलने वाले धुएं से आस-पास के डेंगू मच्छर भी मर जाएंगे।

कैसे काम करता है आयुर्वेदिक पटाखा?

छात्र शिवम ने बताया, इस पटाखे को हमने इलेक्ट्रिक स्पार्क के साथ कुछ कैमिकल को मिक्स करके बनाया है। इस पटाखे में लगे फ्यूज को जलाने से ये एक मिनट में लगभग 500 बार आवाज करता है। उसके बाद फिर से अगर आप इस पटाखे को जलाना चाहते हो तो आपको इस पटाखे में लगे सेंसर के अंदर दोबारा एक फ्यूज लगाना होगा। शिवम ने कहा, इस प्रदूषण रहित आयुर्वेदिक ग्रीन पटाखे को हमने बढ़ते हुए प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए बनाया है। ये पटाखे ‘टू इन वन’ हैं, जिन्‍हें माचिस से भी जला सकते हैं और रिमोट से भी। ये पटाखे बच्चों के लिए ये बहुत सुरक्षित हैं।

छात्रों ने ऐसे बनाया आयुर्वेदिक पटाखा

छात्र सुमित ने बताया, दीवाली पर पटाखों से वायु प्रदूषण और बढ़ जाता है, जिससे लोगों को सांस लेने में बहुत परेशानी होती है। लेकिन, हमारे पटाखे से प्रदूषण न के बराबर होगा और बच्चे हों या बड़े दीवाली को ग्रीन पटाखों के साथ इंजॉय करेंगे। पटाखे में डेंगू मच्छरों को भगाने के लिए कुछ जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया गया है, जैसे- नीम के पत्ते, तुलसी की सूखी लकड़ियों के पाउडर आदि। इसे बनाने में हमें लगभग 15 दिनों का समय लगा है और 900 रुपये का खर्च आया है। वहीं, शिवम ने बताया कि इसे बनाने के लिए प्लास्टिक पीवीसी पाइप, इलेक्ट्रिक स्पार्क सर्किट, नीम के पेड़ की पत्तियां, तुलसी की सूखी लकड़ियों का पाउडर, ट्रांसमीटर और रिसीवर स्विच आदि का प्रयोग किया गया है।

संस्थान के निदेशक डॉ. एन के सिंह ने बताया, कॉलेज के इन्नोवेशन सेल में छात्र और छात्राएं रोजगार और लोकल प्रोडक्ट को बढ़ावा देने के लिए लगातार कुछ न कुछ नया प्रोडक्ट बनाने का प्रयास करते रहते हैं। छात्रों के ऐसे आईडिया से रोजगार के साथ ही बाजारों में त्‍योहार के समय नए-नए प्रोडक्ट देखने को मिलेंगे। छात्रों की इस उपलब्धि पर संस्थान के निदेशक के अलावा अध्यक्ष नीरज मातनहेलिया, सचिव श्यामबिहारी अग्रवाल, कोषाध्यक्ष निकुंज मातनहेलिया, संयुक्त सचिव अनुज अग्रवाल आदि ने खुशी जताई।

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