नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत के ‘मंदिर-मस्जिद’ वाले बयान पर अब संत भी सवाल उठाने लगे हैं। ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि मोहन भागवत हिंदुओं की दुर्दशा नहीं समझते हैं। कई हिंदू मंदिर तोड़े जा रहे हैं। यह सच है। लेकिन, मोहन भागवत को हिंदुओं का दर्द महसूस नहीं हो रहा है।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने मोहन भागवत पर ‘राजनीतिक सुविधा’ के अनुसार बयान देने का आरोप लगाया। उनका कहना है कि जब उन्हें सत्ता प्राप्त करनी थी तो वह मंदिर-मंदिर करते थे, लेकिन अब सत्ता मिल गई तो मंदिर नहीं खोजने की नसीहत दे रहे हैं। मोहन भागवत ने दावा किया है कि कुछ लोग नेता बनने के लिए ये मुद्दे उठाते हैं, लेकिन मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि हम आम हिंदू नेता बनना नहीं चाहते हैं।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने भी दिया था बयान
तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने कहा, मैं मोहन भागवत के बयान से बिल्कुल सहमत नहीं हूं। मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि मोहन भागवत हमारे अनुशासक नहीं हैं, बल्कि हम उनके अनुशासक हैं। इसके अलावा स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने भी आरएसएस प्रमुख के बयान की आलोचना करते हुए कहा था कि जब भी धर्म से जुड़े मुद्दे उठाए जाएं तो धार्मिक गुरुओं की निर्णय जरूर लें। साथ ही वो जो फैसला लेंगे, वो संघ को स्वीकार करना होगा।
मोहन भागवत ने कही थे ये बात
गौरतलब है कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का ये बयान संघ प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयानों पर आया है। संघ प्रमुख ने पुणे में नए ‘मंदिर-मस्जिद’ विवादों के फिर से उभरने पर चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने कहा था कि अयोध्या के राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ व्यक्तियों को यह विश्वास हो गया है कि वे ऐसे मुद्दों को उठाकर “हिंदुओं के नेता” बन सकते हैं। यह स्वीकार्य नहीं है। भागवत के बयान पर सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव और कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने भी सवाल उठाया था।
मोहन भागवत ने आगे कहा था कि राम मंदिर का निर्माण इसलिए किया गया, क्योंकि यह सभी हिंदुओं की आस्था का विषय था। उन्होंने किसी विशेष स्थान का जिक्र किए बिना कहा, ‘हर दिन एक नया मामला (विवाद) उठाया जा रहा है। इसकी इजाजत कैसे दी जा सकती है? यह जारी नहीं रह सकता। भारत को यह दिखाने की जरूरत है कि हम एक साथ रह सकते हैं।’