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कोई बीमारी नहीं है ऑटिज्‍म, बस सही समय पर ऑटिस्टिक बच्चे को मिले सही ट्रीटमेंट

कोई बीमारी नहीं है ऑटिज्‍म, बस सही समय पर ऑटिस्टिक बच्चे को मिले सही ट्रीटमेंट
  • ‘ऑटिस्टिक प्राइड डे’ पर द होप फाउंडेशन के प्रबंध निदेशक दिव्‍यांशु कुमार

अभिषेक पाण्डेय

लखनऊ: दुनिया भर में हर साल 18 जून को ‘ऑटिस्टिक प्राइड डे’ मनाया जाता है। ‘ऑटिज्म’ को लेकर लोगों को जागरूक करने के लिए साल 2005 में इस दिन को सेलिब्रेट करने की शुरुआत हुई थी। ऑटिज्म एक डिसऑर्डर है, जो अधिकतर बच्चों में ही देखने को मिलता है। इससे पीड़ित बच्चों को लोगों से घुलने-मिलने और बोलने-चालने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। एक ही बात को बार-बार दोहराना, चुपचाप घंटों तक बैठे रहना भी इसके लक्षणों में आता है। जाहिर है कि इस डिसऑर्डर में न सिर्फ व्यक्ति का व्यवहार, बल्कि शरीर का विकास भी प्रभावित होता है।

इस दिन समाज में यह संदेश दिया जाता है कि ऑटिज्म कोई बीमारी नहीं, बल्कि एक कंडीशन है। इस खास मौके पर ऑटिज्म से पीड़ित लोगों का कॉन्फिडेंस बढ़ाने की कोशिश की जाती है। ऑटिस्टिक प्राइड डे को सेलिब्रेट करने का मकसद है ऑटिज्‍म से पीड़ित बच्चों के विकास और उनके जीवन की संभावनाओं के बारे में लोगों को जागरूक करना। बता दें कि यह न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर उन्हें सामान्य बच्चों से थोड़ा अलग जरूर बनाता है, लेकिन अच्छा माहौल और केयर देने पर इसे मैनेज भी किया जा सकता है। ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों का कॉन्फिडेंस बढ़ाने के लिए लोगों में जागरूकता बढ़ाना बेहद जरूरी है। और यह काम लखनऊ का ‘द होप रिहैबिलिटेशन एंड लर्निंग सेंटर’ बखूबी कर रहा है।

साल 2023 में द होप फाउंडेशन द्वारा संचालित एवं प्रबंधित ‘द होप रिहैबिलिटेशन एंड लर्निंग सेंटर’ की नींव रखी गई। इन तीन सालों में ऑटिज्म और अटेंशन डेफ़िसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी) जैसे न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर से जुड़े कई मरीजों को थेरेपी के माध्यम से मेन स्ट्रीम में लाने की कोशिश की गई। इन तीन सालों में 50 ऑटिस्टिक बच्चों को मेन स्ट्रीम में भेजने में सफलता भी मिली है। जो बच्चे मेन स्ट्रीम में पहुंच चुके हैं, उनका परफॉरमेंस माइल्स स्टोन अचीव कर रहा है। इस ख़ास मौके पर दिव्यांशु कुमार (प्रबंध निदेशक, द होप फाउंडेशन) से तमाम पहलुओं पर ख़ास बातचीत के कुछ अंश पढ़िए…

 

द होप रिहैबिलिटेशन एंड लर्निंग सेंटर में थेरेपी करवाते स्पेशल बच्चे

द होप रिहैबिलिटेशन एंड लर्निंग सेंटर में थेरेपी करवाते स्पेशल बच्चे

 

सवाल: सबसे पहले आप हमें यह बताएं कि होप रिहैबिलिटेशन एंड लर्निंग सेंटर की स्थापना का उद्देश्य क्या था?

जवाब: हमारा उद्देश्य शुरू से ही न्यूरो डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स से ग्रसित बच्चों पर काम करना रहा है। हमारी ये कोशिश रही है कि जनजागरूकता के माध्यम से जनता के बीच पनप रहीं भ्रांतियों को दूर करें। आम जनमानस में यह धारणा थी कि न्यूरो डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स (आटिज्म, एडीएचडी आदि) से जूझ रहे बच्चे मेन स्ट्रीम से जुड़ नहीं सकते हैं। हमने काफी हद तक इस सोच को बदला है और 50 से अधिक बच्चों को विभिन्न थेरेपी के माध्यम से मुख्य धरा से जोड़ने का काम किया है।

 

सवाल: ऑटिस्टिक प्राइड दिवस, आपके और आपके संगठन के लिए क्या मायने रखता है?

जवाब: समाज की सोच को बदलना। लोगों को यही लगता था कि आटिज्म ला-इलाज है। आटिज्म से पीड़ित बच्चों के साथ भेदभाव किया जाता था। ऐसे बच्चों को नॉर्मल स्कूल में एडमिशन नहीं मिलता था। अभिभावकों को भी लगता था कि अब बच्चे को पूरी जिंदगी किसी न किसी के ऊपर निर्भर रहना पड़ेगा। हालांकि, हमने और हमारी प्रोफेशनल टीम ने इस सोच को काफी हद तक बदलने की कोशिश की है और सफलता भी पाई है। मेरी संस्था का यही उद्देश्य है कि स्पेशल बच्चे को इतना स्पेशल बनाया जाए, जिससे जहां भी वो जाएं, उसकी स्पेशलिटी निखर कर सामने आए।

 

सवाल: आपके सेंटर में ऑटिज़्म से ग्रसित बच्चों के लिए कौनकौन सी सेवाएं और थैरेपी उपलब्ध हैं?

जवाब: सबसे पहले ट्रेंड और प्रोफेशनल स्टाफ। इसके साथ-साथ ऑक्यूपेशनल थेरेपी, स्पीच थेरेपी, बिहेविरियल थेरेपी, पीडियाट्रिक फिजियोथेरेपी जैसी सेवाएं उपलब्ध हैं। इसके अलावा हमारे सेंटर पर स्पेशल एजुकेटर की भी सेवाएं उपलब्ध हैं।

 

सवाल: ऑटिस्टिक बच्चों को मुख्यधारा की शिक्षा और समाज में सम्मिलित करने के लिए किन कदमों की आवश्यकता है?

जवाब: सरकार इस क्षेत्र में सक्रिय है। तमाम सरकारी योजनाओं और स्कीम्स को लॉन्च किया जा रहा है। जमीनी स्तर पर इन योजनाओं का क्रियान्वन हो, यह बहुत जरूरी है। दूसरा कदम, हम जैसे लोगों को उठाना चाहिए। समय-समय पर शिविरों के माध्यम से आटिज्म और अन्य न्यूरो डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स के प्रति जन जागरूकता फैलानी होगी। आम जनमानस तक यह संदेश पहुंचाना होगा कि अगर सही समय पर न्यूरो डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स का ट्रीटमेंट शुरू कर दिया जाए तो परिणाम बहुत ही बेहतर होंगे। डिसऑर्डर कोई बीमारी नहीं है, इसका मतलब है कि कुछ भी सही ऑर्डर में हैं। अगर सही समय पर कार्य शरू किया जाए तो डिसऑर्डर को आर्डर में लाना आसान हो जाता है।

 

सवाल: आप किन प्रयासों के माध्यम से आम जनता को ऑटिज़्म के प्रति अधिक संवेदनशील और जागरूक बना रहे हैं?

जवाब: हम इन दिनों एक कैंप संचालित कर रहे हैं, जिसके तहत न्यूरो डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स से ग्रसित बच्चे चार दिनों की नि:शुल्क सेवाएं ले सकते हैं। इसमें असेसमेंट, सेशंस, आदि पर काम किया जाता है।

 

सवाल: क्या आप हमारे साथ कोई प्रेरणादायक अनुभव साझा कर सकते हैं, जहां किसी बच्चे ने विशेष प्रगति की हो?

जवाब: एक-दो हों तो बताया जाए, अनगिनत अनुभव हैं। जब हमने शुरुआत की थी तो सेंटर में 9 साल की एक बच्ची आई थी। सभी ने अभिभावकों को जवाब दे दिया था कि बच्ची की स्पीच डेवेलप नहीं हो पाएगी। द होप रिहैबिलिटेशन एंड लर्निंग सेंटर की प्रोफेशनल थेरापिस्ट टीम ने नौ साल की बच्ची की स्पीच डेवेलप करके दिखाई। चूंकि, शुरुआत के दिनों की बात है तो ये याद है, ऐसे कई स्पेशल बच्चों की स्पेशलिटी को निखारने का काम हमारी टीम ने किया है।

 

सवाल: इस क्षेत्र में काम करते हुए आपकी सबसे बड़ी सीख या व्यक्तिगत बदलाव क्या रहा?

जवाब: कोई किसी से भी कम नहीं है। हर कोई अपने आप में स्पेशल है। हर बच्चा ख़ास है, बस उसकी खासियत आपको पहचाननी है और उसी के दम पर बच्चे को मिल्सस्टोन अचीव करने में मदद करनी है। बच्चों को हतोत्साहित करने की गलती कभी नहीं करनी है।

 

द होप रिहैबिलिटेशन एंड लर्निंग सेंटर में थेरेपी करवाते स्पेशल बच्चे

द होप रिहैबिलिटेशन एंड लर्निंग सेंटर में थेरेपी करवाते स्पेशल बच्चे

 

सवाल: क्या आपको लगता है कि सरकार की ओर से ऑटिस्टिक बच्चों के लिए पर्याप्त सहयोग और योजनाएं उपलब्ध हैं?

जवाब: चाहे केंद्र हो या प्रदेश, दोनों ही सरकारों ने स्पेशल बच्चों के लिए योजनाएं लॉन्च की हैं। न्यूरो डाइवर्सिटी को सरकार ने प्राथमिकता दी है और यह अच्छी बात है। बस सरकार इनके क्रियान्वन पर ध्यान दे दे तो चीज़ें काफी हद तक बदल जाएंगी। योजनाओं के प्रचार-प्रसार पर भी अत्यधिक ध्यान देने की जरूरत है।

 

सवाल: आप सरकार या नीतिनिर्माताओं से और किन सुधारों की अपेक्षा करते हैं?

जवाब: जो इस क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे हैं, उन NGOs को चिन्हित कर जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई जाएं। इससे सरकार के कंधें और मज़बूत होंगे और न्यूरो डाइवर्सिटी पर और ज्यादा कार्य करना आसान हो जायेगा।

 

सवालभविष्य में होप सेंटर किन नई परियोजनाओं या पहल की योजना बना रहा है?

जवाब: जन जागरूकता के लिए एक वाटर वैन की शुरुआत की जाएगी। प्रयासों में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। शहर के कोने-कोने तक यह वैन जाएगी और गर्मी के इस मौसम में शुद्ध पेयजल के साथ-साथ न्यूरो डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स से जुड़ी तमाम जानकारियों को लोगों तक पहुंचाएगी। इसके साथ-साथ रोबोटिक और हाइड्रो थेरेपी पर कार्य करने का प्रयास किया जाएगा।

 

सवाल: ऑटिस्टिक प्राइड दिवस के अवसर पर आप समाज और अभिभावकों को क्या संदेश देना चाहेंगे?

जवाब: स्पेशल है हर बच्चा, बच्चे की स्पेशलिटी को निखारने का जिम्मा है आपका। स्पेशल बच्चों की ऑब्जरवेशन पावर बहुत ही स्ट्रांग होती है। इसको व्यर्थ न जाने दिया जाए। बस सही समय पर ट्रीटमेंट शुरू हो जाए तो ऑटिस्टिक बच्चा भी नार्मल लाइफ जी सकता है।

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